वेदनामृत
वेदनामृत
काट रहे जो पेड़ जड़ों से वह प्यारे बन जाते हैं।
कर्म वचन तन मन जो सींचे हत्यारे बन जाते हैं।
बिना शर्म के कृत्य घिनौने रिश्तों में भी चीरहरण।
छिपे हुए श्रृंगाल प्रखर जो वह बगुले बन जाते हैं।।
-सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर ‘
वेदनामृत
काट रहे जो पेड़ जड़ों से वह प्यारे बन जाते हैं।
कर्म वचन तन मन जो सींचे हत्यारे बन जाते हैं।
बिना शर्म के कृत्य घिनौने रिश्तों में भी चीरहरण।
छिपे हुए श्रृंगाल प्रखर जो वह बगुले बन जाते हैं।।
-सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर ‘