वृद्धाश्रम
✒️?जीवन की पाठशाला ??️
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की दुनिया में जिस तेजी से जनसँख्या का विस्तार हो रहा है उससे कहीं दुगनी तेजी से इंसान और चौगुनी रफ़्तार से इंसानियत लुप्त /गायब हो रही है ,निस्वार्थ श्रद्धा -भाव -समर्पण -विश्वास -सबूरी इनका धीरे धीरे अकाल पड़ता जा रहा है…,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की दहेज़ लेना मान सम्मान है ,रिश्वत लेना कामयाबी तरक्की की निशानी है ,झुठ बोलना आर्ट है ,यहीं अगर हम दहेज़ को नामर्दगी की निशानी मानते हुए ना दहेज़ लूँगा ना ही दूंगा का संकल्प लें ,चाहे काम देरी से हो पर पर रिश्वत के खिलाफ खड़े हो जाएं और सत्यमेव जयते की राह पर चलें ,पहला बदलाव अपने अंदर -घर परिवार के अंदर ,यकीन मानिये समाज अपने आप बदल जायेगा …,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की एक बेटी का ये मानना की अगर समाज की विचारधाराओं के तहत अगर उन्हें माँ बाप को बुढ़ापे में सम्हालने का नैतिक अधिकार दे दिया जाये तो संपूर्ण राष्ट्र में किसी भी वृद्धाश्रम की जरुरत नहीं पड़ेगी …वहीँ एक बेटे की ये दलील की अगर समस्त बहुएं अपने सास ससुर को ही अपने जन्मदाता माँ बाप जैसा ही दर्जा दें -ख्याल रखें -प्रेम -अपनत्व दें तो डिक्शनरी से ही वृद्धाश्रम का नाम मिट जायेगा…यहाँ मेरे ख्याल से एक बात जुड़ती है की सास ससुर को केवल ऊपरी तौर पर ही नहीं मानसिक -हार्दिक तौर पर भी बहु को बेटी समझना और मानना होगा …,
आखिर में एक ही बात समझ आई की जिंदगी में एक ऐसा मुकाम भी आता है जब आपके अपने -नातेदार -रिश्तेदार -अड़ोस पड़ोस शारीरिक रूप से सब सामने दिखते हैं पर मानसिक रूप से -विचारों से -शब्दों से -हाव भाव से -दिल से समझ से दूर बहुत दूर होते हैं जहाँ से फिर दिलों का मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है ,रिश्ते औपचारिकता और समझौतों में तब्दील हो जाते हैं …!
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान