वृद्धावस्था
आजकल लोग बुढ़ापे को बोझ समझते हैं। बुढ़ापा आते ही उनके अंदर का उत्साह, उमंग मृतप्राय होने लगता है, और वो जिन्दगी को बोझ समझने लगते है ।आजकल स्थित भी ऐसी ही है लोग वृद्धों को अपने साथ रखना नहीं चाहते, उनकी सेवा के लिए उनके पास समय नहीं है और उन्हें वृध्दाश्रम में छोड़ आते हैं अगर जो परिवार के साथ है भी वो परिवार में अकेलापन महसूस करते हैं इसलिए बुढ़ापा और भी भारी लगने लगता है इस उम्र में लोग स्वयं को असहाय मान लेते हैं इसलिए उन्हें तमाम बीमारियां भी घेरने लगती है। अगर हम किसी उपकरण का उपयोग लम्बे समय से न करे तो उसकी उपयोगिता समाप्त होने लगती है वैसे ही मनुष्य जीवन है अगर हम अपनी क्षमताओं, शक्तियों, योग्यताओं का प्रयोग नहीं करेंगे तो धीरे धीरे हमारी भी उपयोगिता समाप्त हो जाएंगी इसलिए अगर हम स्वयं को ऊर्जावान रखें, अंदर से प्रफुल्लित रहें, उल्लास, सकारात्मकता से भरे रहे, चेहरे पर मुस्कान बनाए रखें तो वृद्धावस्था में भी हम युवा दिखेंगे और जिन्दगी बोझ नहीं लगेगी।हर उम्र की अपनी खामियां व खुबियां होती है, वृद्धावस्था की भी खुबियां होती है उसको महसूस करें, अपने अनुभवों को साझा करें व इस उम्र का भी आनंद लें।