वृक्ष और मानव जीवन
वृक्ष और मानव जीवन
कुंडलिया
1
गाएँ हम मिलकर सभी , आज वृक्ष का गीत
खड़ा हुआ सिर तान जो , करें सभी से प्रीत
करें सभी से प्रीत , धूप निज सिर पर लेते
हम जाते जब पास , छाव हमको वह देते
फल के सहित सुगंध , सदा उससे हम पाएँ
तरु क्षिति का श्रृंगार , चलो उसका गुण गाएँ
2
वन की हरियाली सदा , देती हैं संदेश
हरा भरा हर भाँति है , अपना भारत देश
अपना भारत देश , खेत में उपजे मोती
जहाँ अधिक है वृक्ष , वृष्टि नियमित है होती
हँसते वर्षा देख , भूल कर्षक सुधि तन की
ऐसे लाभ अनेक , करें रक्षा हम वन की
3
डाली रोकर वृक्ष की , करतीं दुखकर बात
ज्ञानी होकर भी करें , मानव हमसे घात
मानव हमसे घात ,जिन्हें फल बाँट रहे हम
उनको देकर छाँव , धूप भी काट रहे हम
कैसा आया काल , कहाते रक्षक माली
निर्दयता से काट , रहे हैं वे भी डाली
4
धरती के तरु को सदा , नमन करें सब लोग
जो औषधि देकर हमें , दूर करें सब रोग
दूर करें सब रोग , भूख भी हर लेते हैं
खाने को फल मूल , आदि वे ही देते हैं
जहाँ उपजती घास , उसे कहते हैं परती
स्वर्ग बनी है मात्र , पेड़ पौधों से धरती
5
छाया देते हैं तथा , हरते हैं दुर्गंध
रक्षा करते प्राण की , देकर हमें सुगंध
देकर हमें सुगंध , फूल से फल बन जाते
जिस फल को हम लोग , प्यार से भोग लगाते
उसी पेड़ को काट , भला किसने क्या पाया
नष्ट किया वह मूर्ख , स्वयं निज सिर की छाया