वीरगति
वीरगति की वह गाथा जो
बचपन से सुनता आया हूं
आज अभी लोगो में अपने
संदेश शौर्य का लाया हूं ।
उन मात पिता को वंदन है
जिनके सपूत हुए बलिदानी
जिस मिट्टी मे वो खेले है
सीखी जिससे भक्ति निभानी ।
बंदूको की खेती का
जिसने जज्बा पाल लिया
इंकलाब की गोली से ही
दवा, बीमारी की जान लिया ।
दुःखो की बेडी में जो
माता मेरी जकडी है
उस बेडी के टुकडे होंगे
राह यही जो पकडी है ।
राजगुरू,सुखदेव को लेकर
भगत सिंह रण मे कूद पडे
बात दूर तक पडे सुनाई
तब अंग्रेजो से जूझ पडे ।
कुछ भी करके मिले अज़ादी
भरी सभा मे खूब लडे
भारत मेरा छोड दो अब
इसी बात पर सभी अडे ।
देश बचाने की खातिर
जन-जन में तब हुआ जागरण
मातृ भूमि पर पर मिटने को
निकले ओढ वसंती आवरण ।
क्रांति की आग जल पडी
और हवा दी अरमानो ने
फांसी की सजा सुना दी
विलायती हुक्मरानो ने ।
अपनो की गद्दारी ने
इन क्रांतिवीरों को खोया
गंदी राजनीति ने भी फिर
चुल्लू भर पानी मे मुंह धोया ।
पर जो ज्वाला भड़कानी थी
वो हृदय मे लगा कर चले गये
देश उसी पथ पर बढ गया आगे
वीर ,वीरगति पर चले गये ।
आज मुक्त हवा भी ऋणी आपकी
बाकी जन मानस का क्या कहना
आपका शौर्य,आपकी गाथा
है हृदय मे प्रेम से धारण करना ।
भारत माता की जय🙏