“विहग”
🐦 “विहग” 🐦
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विहग की तरह पर मुझे भी होते।
तो आसमान में हम उड़ रहे होते।
स्वच्छंद, उन्मुक्त उड़ान के जरिए ,
हमारे ख़्वाबों में पंख लग रहे होते।
( स्वरचित एवं मौलिक )
© अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : – 07 / 04 / 2022.
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