विष्णुपद छंद
विष्णु पद छंद
16/10
प्रति क्षण हृदय प्रतीक्षा करता,किन्तु नहीं आते।
चाहत में बस एक तुम्हीं हो, किन्तु नहीँ पाते।।
जीवन सारा बीत रहा है,केवल चाहत में।
अंधकार का यह मंजर है, मन है आहत में।।
वक़्त नहीँ आता है हँसता,कैसे समझाएं?
दुखी बहुत है य़ह प्यारा मन,किस भांति मनाएं??
सूख रहीं है काया क्षण-क्षण,आंखों में सागर।
सूना-सूना हर कोना है,निर्जन सारा घर।।
दिल दरिया अब सूख चली है,रोता अब सावन।
रिमझिम-रिमझिम अर्थहीन है,कभी न मनभावन।।
समय लुभावन कब आयेगा,कौन बताएगा?
कब आयेगा साथी सज्जन,गीत सुनाएगा?,
रात कट गयी रोते- धोते,भोर सताता है।
मन पक्षी असहाय बहुत हो,शोर मचाता है।।
मधुर मास जीवन कब होगा,बतलाओ प्यारे?
हिंद देश का भावुक जन यह,कब देखे तारे??
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।