विषय :- रक्त रंजित मानवीयता रस-वीभत्स रस विधा-मधुमालती छंद आधारित गीत मापनी-2212 , 2212
#मुखड़ा-
लथपथ लहू, होती मिली।
धिक्कार कर, रोती मिली।।
#अन्तरा-1
खल-शठ हुए,आतुर यहाँ।
हैं बेटियाँ, कातर यहाँ।।
दनु दानवी,मुखखुर लिये।
व्यभिचार पर,सु अधर सिये।।
धिक्कार कर, रोती मिली।
चिर नींद मृत,सोती मिली।।
#अन्तरा-2
वायस शिवा, नोंचें उसे।
वश वासना, सोचें उसे।।
वो चीथड़ों, सी फट गई।
वो लोथड़ों, में कट गई ।।
धिक्कार कर, रोती मिली।
संताप उर, ढोती मिली।।
#अन्तरा-3
वो मर गयी,व्यभिचार से।
वहशी पने, के वार से।।
चहुँ ओर ही, दुर्गन्ध थी।
साँसे हुईं, सुन बंद थीं।।
धिक्कार कर, रोती मिली।
विश्वास मन,खोती मिली।।
#अन्तरा-4
मनुष्यता घायल घनी।
अपने लहू से वो सनी।।
छोड़े नहीं, अवशेष थे।
वो भेड़िये, के भेष थे।।
धिक्कार कर, रोती मिली।
पाहन हिय,ढोती मिली।।
#अन्तरा-5
सच भी सुनो,चोटिल हुआ।
होना सुता, कौटिल हुआ।।
जाती जली,मधु कोकिला।
मद वासना, है अति बला।।
धिक्कार कर, रोती मिली।
तन रक्त से धोती मिली।।
नीलम शर्मा ✍️