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2 May 2024 · 1 min read

विषय :- रक्त रंजित मानवीयता रस-वीभत्स रस विधा-मधुमालती छंद आधारित गीत मापनी-2212 , 2212

#मुखड़ा-
लथपथ लहू, होती मिली।
धिक्कार कर, रोती मिली।।

#अन्तरा-1
खल-शठ हुए,आतुर यहाँ।
हैं बेटियाँ, कातर यहाँ।।
दनु दानवी,मुखखुर लिये।
व्यभिचार पर,सु अधर सिये।।

धिक्कार कर, रोती मिली।
चिर नींद मृत,सोती मिली।।

#अन्तरा-2
वायस शिवा, नोंचें उसे।
वश वासना, सोचें उसे।।
वो चीथड़ों, सी फट गई।
वो लोथड़ों, में कट गई ।।

धिक्कार कर, रोती मिली।
संताप उर, ढोती मिली।।

#अन्तरा-3
वो मर गयी,व्यभिचार से।
वहशी पने, के वार से।।
चहुँ ओर ही, दुर्गन्ध थी।
साँसे हुईं, सुन बंद थीं।।

धिक्कार कर, रोती मिली।
विश्वास मन,खोती मिली।।

#अन्तरा-4
मनुष्यता घायल घनी।
अपने लहू से वो सनी।।
छोड़े नहीं, अवशेष थे।
वो भेड़िये, के भेष थे।।

धिक्कार कर, रोती मिली।
पाहन हिय,ढोती मिली।।

#अन्तरा-5
सच भी सुनो,चोटिल हुआ।
होना सुता, कौटिल हुआ।।
जाती जली,मधु कोकिला।
मद वासना, है अति बला।।

धिक्कार कर, रोती मिली।
तन रक्त से धोती मिली।।

नीलम शर्मा ✍️

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