विषय :- मीत
विषय :- मीत
शीर्षक :-तू ही करतार है
विधा :-कविता – स्वछंद
लेखक रचनाकार :-डॉ अरुण कुमार शास्त्री
मीत – मीत सा मीत जो ,
वही भरे संगीत ।
देख पराई चुपड़ी ,
बजता क्यूँ संगीत ।
बजता क्यूँ संगीत ।
अरे मन तुम गाओ रे मल्हार ।
घन गहन घनघोर हो ।
बरसे बरखा बहार ।
थाली बैगन की तरह ।
इधर उधर भटकाव ।
मन संशय मिटता नहीं ।
जो न करे प्रयास ।
तेरा मीत मेरा मीत ।
तनिक नहीं अभ्यास ।
मीत जगत का एक ही ।
ईश्वर प्रभु और राधा माधव खास ।
अपनी – अपनी झोपड़ी ।
सभी बनाते नेक ।
कमरों की इच्छा नहीं घटती ।
स्वप्न भरे मन देख ।
तुझमें राम मुझमें राम ,
घट – घट बसते राम ।
जो सच्चे मन से रटे ,
मिल जाते संसाधन अविराम ।
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