विषय-पति परमेश्वर।
विषय-पति परमेश्वर।
शीर्षक-ईश्वर छल नहीं करता।
विद्या-कविता।
एक सोनचिरैया की हुई शादी,
पति को पति परमेश्वर माना।
पति को अपना जीवन,
अपना ईश्वर जाना।
सोनचिरैया का पति भी, उसे मान देता था।
उसे बहुत चाहता था,
सम्मान देता था।
दोनों की तीन संतान,
जीवन बहार हुआ।
पति परमेश्वर और पत्नी परमेश्वरी का,
सुखी संसार हुआ।
एक दिन सोनचिरैया का पति,घर नहीं आया।
मर गया पति,किसी ने पत्नी को बताया।
पति बिना मर ही जाती पर,बच्चों को कैसे अकेले छोड़ देती?
फ़र्ज तो निभाना ही था,
फर्ज से कैसे मुँह लेती?
बच्चों को प्यार से पालने लगी,हर रीत निभाई।
पति परमेश्वर न फिर भी, पति से की प्रीत निभाई।
एक दिन पति आया वापिस,बताया किसी से प्यार हो गया था।
किसी और के संग रहा,
जीवन साथी बनने का करार हो गया था।
सोनचिरैया ने कहा,जैसे आए,वैसे चले जाओ।
अब वहीं पर हर करार,हर प्यार निभाओ।
विवाह आत्मा का बंधन,
मन से मन का मिलन होता है।
न होता छल उसमें,न स्वार्थ का चलन होता है।
ईश्वर छल नहीं करता,
अब तुम ईश्वर न रहे।
जब भूले कि मैं पत्नी परमेश्वरी,तो तुम भी पति परमेश्वर न रहे।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
Priya princess Panwar
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़, नई दिल्ली-78
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