विषय-“जलती रही!”
विषय-“जलती रही!”
रचनाकारा-प्रिया प्रिंसेस पवाँर।
स्वरचित,मौलिक रचना।
ह्रदय में साहस अग्नि, एक बार ऐसी जली
कि जलती रही-जलती रही।
मेरे पग;पग-पग पे जख़्मी,
पर हिम्मत आंच ऐसी सुलगी कि जलती रही- जलती रही।
मैं जन्मी,
एक अस्तित्व का जन्म हुआ।
पर हर किसी को,
अलग-2 भरम हुआ।
मैं तो एक इंसान और एक धरा भी।
मैं ही सफेद केसरिया
और रंग हरा भी।
पर हर किसी ने अलग समझा,
न मुझको,मुझ तलक समझा।
जिंदगी इस दर्द में
पलती रही-पलती रही।
समझे मुझे इंसान…
इस हाय से मैं…
हाय जलती रही-जलती रही।
झूठे अपनों ने मुझे,
जलती रही चिता का आकार दिया।
न कोई प्रेम,
न जीवन साकार दिया।
पर मेरी शक्ति,
टूटती नहीं है।
हिम्मत की हिम्मत,
छूटती नहीं है।
नहीं बनूंगी वो चिता, जो जलती रही-जलती रही।
बनूँगी वो साहस अग्नि, जो जलती रही-जलती रही।
मैं बनूँ वो आस जो, चलती रही-चलती रही।
मैं तो वो रोशनी जो…
सदैव जलती रही-जलती रही।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
Priya Princess Panwar
स्वरचित,मौलिक रचना।
सर्वाधिकार सुरक्षित।
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78