#विषय उलझन
#विषय उलझन
#विधा चौपाई छंद
उलझन है जीवन का हिस्सा ।
सुने पढ़े हमने बहु किस्सा ।।
जब जब आती है कठिनाई ।
उलझन बन जाती दुखदाई ।।
कुछ में होता मानव दोषी ।
कुछ अदृश्य प्राकृत ही पोसी।।
स्वारथ सुविधा बनता कारण ।
प्राकृतिकजीवन स्वय निवारण ।।
उलझन एक बनी मन भाई।
भारत कहना कौन बुराई।।
भरत नाम भारत इतिहासा।
नाम इंडिया कैसी आसा।।
दूसर उलझन धर्म सनातन।
क्यों मन खटकें होली सावन।।
भारत माता का सब खाते ।
धर्म विदेशी इनको भाते।।
पढे लिखे क्यों मूरख बनते।
शाश्वत सत्य झूठ क्यों लगते।।
उलझन बडी कौन सुलझावे।
भ्रमित बुद्धि समझ नहीं आवे ।।
सही कहा है तुलसी बाबा ।
धर्म हीन करते यह दाबा।।
जिसको दंड देत रघुराई।
ज्ञान बुद्धि पहले पगलाई।।
राजेश कौरव सुमित्र@