विषय-आज उम्मीदों का दीप जलाएं।
विषय-आज उम्मीदों का दीप जलाएं।
शीर्षक-उम्मीद दिलाएं हम।
रचनाकारा-प्रिया प्रिंसेस पवाँर
है अँधेरा उस अज़नबी के आंगन में,
आओ कुछ पहचान बनाएं।
बनाकर अपनापन,
आज उम्मीदों का दीप जलाएं।
अगर टूटी उस मजबूर की उम्मीद,
तो उम्मीद दिलाएं।
आओ हम सब मिलकर,
उम्मीदों के दीप जलाएं।
टूटा है प्यारा दिल यहाँ,
आँख रोती है।
क्यों प्यार की जमीं पर,
दुनिया नफ़रत बोती है?
क्यों अपने रांझे को,
हीर खोती है?
उम्मीद हार सिसकता आसमां,
सिसक-सिसक धरती रोती है।
उम्मीद ही तो जीने का,
सिला देती है।
उम्मीद ही तो पत्थर को,
पिघला देती है।
उम्मीद ही तो एक से,
दूजे को मिला देती है।
प्यार के रास्तों के पहाड़,
हिला देती है।
न मतलबी बनो,न लालच करो।
मरने से पहले न,
जीते जी मरो।
सब देखता है ईश्वर,
इस बात से डरो।
मानवता और प्रेम अपनाओ पहले,
फिर यही उम्मीद करो।
किसी टूटी उम्मीद को,
उम्मीद दिलाएं हम।
किसी काली रात को,
उजली बात बनाएं हम।
उदास दिल में किसी के,
ख़ुशी की सौगात दे जाएं हम।
आज तो वैसे भी है दीवाली तो,
आज”उम्मीदों का दीप जलाएं”हम।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78