विषय-अर्ध भगीरथ।
विषय-अर्ध भगीरथ।
विद्या-काव्य(कविता)
रचनाकार-प्रिया प्रिंसेस पवाँर
महान भगीरथ हुए, प्राचीन काल में।
पूर्वजों के पाप मिटाए,उस काल में।
पूर्वजों के पाप की सारी, बुराइयाँ सुधार दी।
पाप धोकर उनके,धरती पर गंगा उतार दी।
गंगा लाए धरा पर; भगीरथ बहुत पवित्र,महान थे।
किया मनुष्य जीवन सार्थक,सार्थकता की पहचान थे।
अधर्मी मनुष्यों के घर, मैंने जन्म लिया।
मैंने भी;अपनो के पाप मिटाने का,करम लिया।
लेकिन वो था पुण्य युग,फिर भी उसमें कुछ अशुद्ध था।
अब तो पहले ही पाप युग,फिर मिलेगा कैसे कुछ शुद्ध?
महान भगीरथ वीर थे;धीर थे,सह गए सब पीर थे।
मैं भी बनी दुःख-भोगी सम्पूर्ण जीवन,सूखे न मेरे नीर थे।
महान भगीरथ ने पूर्वजों को भी सन्त कर दिया।
होने वाले कुअन्त को सुअन्त कर दिया।
भगीरथ थे सुदृढ़ मनुष्य महान।
और प्रिया है कोमल इंसान।
जितनी थी समर्थता,मैंने उतना कार्यवास लिया।
सम्पूर्ण जीवन बनाकर मरण,भागीरथी प्रयास किया।
पर अब न कोई शक्ति ,मुझे ह्रदय से प्राप्त होती है।
बस अब मेरी सहनशक्ति की सीमा,समाप्त होती है।
जितनी जीवन आयु बिताई।
उतना भागीरथी-रूप धरती आई।
पर अब न और ये रूप धर पाऊंगी।
चाहे भले ही न कहलाऊं; सम्पूर्ण भगीरथ…
पर,अर्ध भगीरथ तो कहलाऊंगी।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
सर्वाधिकार सुरक्षित