विषय:सावन
विषय:सावन
विद्या:स्वतन्त्र (कविता)
सावन गर नयनों से बहे,
तो देता तड़प, देता पीर।
दिल के करता टुकड़े,
कलेजा देता है चीर।।
सावन गर मौसम का,
तो प्रकृति मुस्काती है।
खिले चमन,खिले कली,
मौसमी-बहार छाती है।।
सावन प्यार का आता,
दिल खिल-2 जाता।
दिल में उठती मीठी लहरें
दिल में सावन छाता।।
भक्ति अगर बनती सावन
तो जीवन बनता पवित्र।
अमृत रहता रग-2 में,
बने जीवन गंगा-चित्र।।
सावन को कई भावों में,
साहित्य में करे प्रयोग।
कभी प्रेम,कभी है जोग,
कभी तपस्या का फल,
कभी भक्ति योग।।
प्रकृति की पुकार पर,
रिमझिम फुहार बरसाता सावन।
कण-2 खिलाता सावन,
मन से मन मिलाता
सावन।
धरा भेजे नभ में संदेश, तो बादलो का लेकर उपहार…
धरा से मिलने आता सावन।
कई भावों मेंआता सावन
और बरस-2 जाता।
डूबकर अलग-2 रसों में
बरसता ,बरस-2 जाता!
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
Priya princess Panwar
स्वरचित,मौलिक
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