विषधर
विषधर
बरखा रानी ने धरा पर अपना साम्राज्य फैलाया तो बिल में जल भर जाने से सर्प और सर्पिणी निष्कासित हो गए। वे रेंगते-रेंगते एक घर में जा प्रकट हुए।अचानक सर्पिणी फुफकार उठी। सर्प बोला, “क्या हुआ?”
सर्पिणी बेचैन होकर बोली,”हाय-हाय! हम लुट गए…बरबाद हो गए।” सर्प-” वो कैसे?”
सर्पिणी-” वो देखो, मानव नाम का जीव अपनी ही प्रजाति की यहाँ तक कि अपनी ही कुटुंबिनी- स्त्री पुत्रवधु को कामुकता की दृष्टि से देख रहा है, वो न जाने क्या करने वाला है इसके साथ! इसका मर्द तो फ़ौज में है।”
सर्प- “यह तो उसकी पुत्री समान हुई।इसे तो उसकी पिता सदृश्य रक्षा करनी चाहिए। पर तुम्हें इस सबसे क्या?”
सर्पिणी-” अरे! अभी तक तो हम विषधर कहलाते थे…अब तो मानव भी विषधर हो चला है।इसने हमारी उपाधि ही छीन ली।”
साँप कुछ व्यथित हो कहने लगा, हाँ इनमें भी कई तरह के विषधर पाए जाते हैं।जाति-धर्म आदि भेदभाव के नाम पर एक-दूसरे डसते विषधर, भ्रष्टाचारी और आतंकी विषधर एवं ऐसे मासूम कन्याओं को डसते विषधर….
सर्पिणी आक्रोश में भर उठी, बोली-” इसको तो मैं नहीं छोड़ूँगी।”
कहकर सर्पिणी फन फैलाए उधर चल दी जिधर दूसरा विषधर एक अबला के दामन को डंक मारने ही वाला था।
# डॉ. बीना राघव