प्यारी सी गौरैया रानी
प्यारी सी गौरैया रानी
पक्के अपने याराने थे
फिर कैसे तेरे ही दुख से
हम सब इतने अनजाने थे
याद हमें बचपन के वो दिन
रोशनदान हुआ करते थे
घास फूस के तिनके तिनके
उसमे खूब दिखा करते थे
सीढ़ी लगा लगा कर उसके
अंदर हम झाँका करते थे
शैतानी से भरे हमारे
वो दिन भी बहुत सुहाने थे
प्यारी सी गौरैया रानी
पक्के अपने याराने थे
खुश हो जातेे थे जब उसमें
हमें नज़र अंडे आते थे
मम्मी के डर से लेकिन हम
पास न उनके जा पाते थे
पर मम्मी के जाते ही हम
झट से ऊपर चढ़ जाते थे
समझाने पर भी हम उनकी
बात नहीं माना करते थे
प्यारी सी गौरैया रानी
पक्के अपने याराने थे
फिर वो दिन भी आ जाता था
जब बच्चे बाहर आते थे
और चोंच में चोंच डालकर
माँ से ही दाना खाते थे
हमें देख कर ची ची ची कर
वो कितना शोर मचाते थे
अब हम भी अनजान नहीं
उनके जाने पहचाने थे
प्यारी सी गौरैया रानी
पक्के अपने याराने थे
नहीं रहे अब छत औरआँगन
बालकनी का युग आया है
पेड़ों का भी तो मिल पाता
मुश्किल से ही अब साया है
ऊँची ऊँची बनी इमारत
जंगल काट काट कर सारे
भूल गए हम तुमको भी तो
अपने घर यहाँ बनाने थे
प्यारी सी गौरैया रानी
कैसे अपने याराने थे
21-03-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद