विश्वास
मन के द्वार न खोलिए,
कितना हो कोई खास।
मन के मोती बिखरते,
टूटे है विश्वास।
टूटे है विश्वास,
न कुछ अब आशा करिए।
देव समझ मानव से,
न अब अभिलाषा करिए।
‘डिम्पल’ लगती चोट,
होती है मन की हार।
रहे सदा पछतावा,
क्यों खोला मन के द्वार।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’🖊️