विश्वास
विश्वास
इस कस्बेनुमा शहर के बीचोंबीच मेरी स्टेशनरी की एक छोटी-सी दुकान है, जहाँ पर कटे-फटे नोट भी बदले जाते हैं। पिछले कुछ दिनों से मैंने महसूस किया कि एक पंडित जी लगभग हर हफ्ते-दस दिन में दो, पाँच और दस रुपए के 50-60 नोट बदलने के लिए आ रहे हैं। जिज्ञासावश एक दिन मैंने उनसे पूछ ही लिया, ”भाई साहब, आपके पास इतने सारे कटे-फटे नोट कहाँ से आ जाते हैं ? कहीं आपने भी तो आपने मुहल्ले में नोट बदलने का काम शुरु नहीं कर दिया है ?”
उन्होंने बहुत ही शांत भाव से जवाब दिया, “जी नहीं, मैं गोल चौक के पास वाले शिव मंदिर का पुजारी हूँ।”
“तो ?” मैंने आश्चर्य से पूछा।
“तो क्या ? वहीं मंदिर में चढ़ावे में मिलते हैं ये सारे कटे-फटे नोट।” उन्होंने बताया।
“हे भगवान ! क्या कलयुग आ गया है। आजकल लोग भगवान को भी नहीं छोड़ रहे हैं। इन्हें देखकर आपको तो बहुत बुरा लगता होगा ?” मैंने कहा।
पंडित जी निःश्वास छोड़ते हुए बोले, “बुरा लगने जैसी कोई बात नहीं है। मुझे इस तसल्ली है कि लोगों को अब भी ईश्वर पर विश्वास तो है। यह भी विश्वास है कि उसके दरबार में खोटे सिक्के और कटे-फटे नोट भी चल जाते हैं।”
अब मैं उन्हें कटे-फटे नोटों के बदले निर्धारित राशि काटकर अच्छे नोट देने लगा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़