विश्वास
अपनी भावनाओं का मैं ,अक्सर उपहास किया करता था।
शोर – गुल से दूर कही मन मेरा ,प्रवास किया करता था।
वो लोग भी क्या लोग रहे जो निशिदिन कटुता भरते रहे,
मैं पागल था जो उनपर ,अंधा विश्वास किया करता था।
– सिद्धार्थ पाण्डेय
अपनी भावनाओं का मैं ,अक्सर उपहास किया करता था।
शोर – गुल से दूर कही मन मेरा ,प्रवास किया करता था।
वो लोग भी क्या लोग रहे जो निशिदिन कटुता भरते रहे,
मैं पागल था जो उनपर ,अंधा विश्वास किया करता था।
– सिद्धार्थ पाण्डेय