विशाल नन्हा
विशाल नन्हा
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तिनका तिनका जोड़कर नन्हा पंछी
बना रहा था अपना घरौंदा
आंधी, हवा, बारिश का कहर
अचानक आकर उस नन्हे के सपने पर कौंधा
डर गया मासूम, मायूस बैठा पेड़ की जड़ पर
उसकी आंखों की कोर के आंसू किसने देखे
उसके मन की व्यथा को किसने समझा किसने जाना
मूक पक्षी बेचारा जाता भी तो किससे कहता
चुप बैठ अश्रु और अपना दुख सहता
इंसान अपने दर्द, कह और सुन लेता है
सुख दुख रोना, हंसना आपस में ही गुन लेता है
ये नन्हा पंछी इस बारिश में
अब किस दिशा में जायेगा
किससे मांगेगा सहारा, कहां नया घर बनाएगा
सहमा सहमा
गुजार रहा था रात कहर की तूफान भरी
पौ फटी, तूफान थमा, वातावरण प्रशांत हुआ
घरौंदे के बिखरे तिनके देख नन्हा फिर अशांत हुआ
एक भय उसके मन को विचलित कर रहा था
नया घरौंदा बुनने से भयभीत था, डर रहा था
उसी पेड़ कि डाल पर एक कौआ भी बसा हुआ था
उसका घोंसला भी इसी तूफान में नष्ट हुआ था
नन्हे की आंखों के आंसू और मन भाषा पढ़ ली उसने
नन्हे को साहस दिया और कहा फिर से कमर कसने
प्रकृति से कब तक भागोगे , यह सब हमारा प्रारब्ध है
नया घरौंदा बुनो, मैं लाता हु
तृण जितने भी उपलब्ध है
इसी वृक्ष पर फिर से एक नया घर निर्माण करेंगे
प्रकृति का आक्रोश मानकर ,, नए मार्ग पर पुनः चलेंगे
साहस मत त्यागो , संघर्ष करो
अपनी शक्ति से नव्य कथा लिखकर हम सबका आदर्श बनो ।
तन से था काला वो कौआ , मन से कितना निर्मल था
रूप रंग हेय मानते हम उसका , कितना मृदु सरल था।
हम भी अपने मन को इतना कोमल सद्भाव से भरे
आओ मिलकर इस विश्व में , नए मार्ग का चुनाव करे ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J 1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू 2, सेक्टर 78
नोएडा (UP)