विवेक जागरण
प्रेम आराधना और साधना, होती नहीं एक समान,
एक समर्पण दूजे अर्पण, नहीं हाथ कोय कमान.
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जग घूमे देखे पंचधाम,चूके एक गंगा स्नान,
सब पत्थर पलटे,चूके एक पाहन बे जुबान,
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डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस
प्रेम आराधना और साधना, होती नहीं एक समान,
एक समर्पण दूजे अर्पण, नहीं हाथ कोय कमान.
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जग घूमे देखे पंचधाम,चूके एक गंगा स्नान,
सब पत्थर पलटे,चूके एक पाहन बे जुबान,
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डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस