विवाह
विवाह
बाहर बारिश की खनक हो रही थी , भीतर राम, लक्ष्मण, सीता कविताओं, कहानियों आदि से एक दूसरे का मनोरंजन कर रहे थे, यह सावन की पहली फुहार थी, पृथ्वी किसी नवयौवना की तरह महक उठी थी, हर फूल हर डाली तैयार थी, जीवन के नए रूप, नए श्रृंगार के लिए ।
इतने में किसी के ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई, तीनों चौंक उठे , इस वर्षा में , इस अंधकार में कौन हो सकता है। लक्ष्मण ने आगे बड़कर द्वार खोल दिया, राम धनुष बाण के साथ सावधान हो गए, सीता ने दिये की बात्ती को और बढ़ा दिया ।
द्वार खुला तो सामने एक युवक जोड़ा कीचड़ से लथपथ पाँव लिये, पूरी तरह भीगा उनके समक्ष खडा था। सीता ने आगे बढ़कर उन्हें भीतर आने के लिए आमंत्रित किया । उन दोनों को वह कुटिया में बनी एक मोरी की ओर ले गई, उनके हाथ पैर धुलाये, चूल्हे की आग अभी पूरी तरह से बुझी नहीं थी, लक्ष्मण ने उसमें सूखी लकड़ियाँ डालकर फिर से प्रज्ज्वलित कर दिया, वह युवक जोड़ा अपने वस्त्र निचोड़ कर वहीं आग के पास बैठ गया ।
राम ने पूछा, “ कौन हैं आप लोग? “
“ मैं आनंद हूँ , और यह उमां है । हम दोनों विवाह करना चाहते हैं । “
“ तो इसमें समस्या क्या है ? “ राम ने पूछा ।
“ हम दोनों भिन्न जनजातियों से आते हैं । उमा के पिता नदी के पूर्वी तट की जनजातियों के मुख्या हैं तो मेरे पिता पश्चिमी तट की जनजातियों मुख्या हैं , कई पीढ़ियों से दोनों में रोटी बेटी का संबंध टूट गया है, दोनों बात बात पर युद्ध के लिए तत्पर हो जाते हैं । “
थोड़ी देर तक कुटिया में शांति छाई रही ।
राम ने फिर कहा, “ तुम्हारे परिवार तुम दोनों के बारे में जानते हैं? “
“ जी । “ युवक ने सिर झुकाए हुए कहा ।
“ वे जानते हैं तुम दोनों भागकर मेरे पास आए हो ?”
“ वे अनुमान कर सकते हैं, इस जंगल में आपसे बड़ा सहायक कौन है !”
राम कुछ पल अपने विचारों में लीन रहे , फिर उन्होंने सीता से कहा, “ आज रात इनकी कुटिया में रहने की व्यवस्था कर दो , कल सुबह देखेंगे स्थितियाँ कैसी हैं !”
बादल रात को ही छट गए थे । अगली प्रात सूर्योदय से पूर्व कुटिया के आसपास कोलाहल बढ़ने लगा ।
लक्ष्मण ने मुख्य द्वार खोल दिया। अतिथि उत्तेजित थे, और राम पर जनजातियों का नियम तोड़ने का आरोप लगा रहे थे । वह युवक और युवती को अपने अपने क्षेत्र में ले जाकर दंड देना चाहते थे ।
राम जैसे ही बाहर आए सब शांत हो गए, जैसे इस तेज के समक्ष उनके अपने विचार धुंधले पड़ गए हों ।
राम ने कहा, “ युवक और युवती के माता-पिता आगे आएँ ।”
उनके सामने आते ही राम ने कहा, “ कहिए । “
युवक के पिता ने कहा , “ राम हम आपका सम्मान करते हैं , परन्तु यह आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। “
राम ने मुस्करा कर कहा, “ वह कैसे?”
युवती के पिता ने कहा, “ राम यह हमारी पारिवारिक समस्या है।”
“ तो क्या परिवार राज्य का भाग नहीं है ? “ राम अभी भी मुस्करा रहे थे ।
“ है, परंतु…” युवक के पिता ने कहा ।
“ परंतु क्या ?” लक्ष्मण ने युवक के पिता के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
राम ने एक पल के लिए अपने सामने फैले जनसमूह को देखा और फिर कहा, “ मुझे ध्यान से सुनें , यह राम कह रहा है, आपका अधिकार अपने स्नेह पर है, घृणा पर नहीं , राज्य घृणा करने तथा उसे बढ़ाने की स्वतंत्रता नहीं दे सकता। “
सब लोग सन्नाटे में थे । राम ने फिर कहा, “ इनके विवाह में दूसरी बाधा क्या है ?“
“ राम, कुछ पीढ़ियों पूर्व हमारी जाति का इनकी जाति से प्राकृतिक संपदा को लेकर युद्ध हुआ था, जिसमें दोनों ही पक्षों को भारी क्षति हुई थी, तब यह निर्णय हुआ था कि उसकी कथा आने वाली पीढ़ियों को दोहराई जाएगी और इनके साथ कभी कोई संबंध नहीं रखा जाएगा ।
“ लड़की के पिता ने कहा ।
“ परन्तु संबंध तो है , घृणा का संबंध ।” राम के साथ खड़ी सीता ने कहा ।
“ इसका अर्थ यह भी हुआ एक समय था जब घृणा नहीं थी। “ लक्ष्मण ने राम के निकट खड़े होते हुए कहा ।
“ और जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है, तो क्यों न इस मनुष्य को राख कर देने वाली भावना का आज अंतिम संस्कार कर दिया जाए ! “ राम ने मुस्करा कर कहा ।
वनवासी फिर निरूतरित हो गए ।
“ मैं जानता हूँ , भावना का जीवन तर्क से लंबा होता है। घृणा की इस भावना को मिटने में समय लगेगा, परन्तु यदि हम निरंतर विश्वास बढ़ाने का प्रयत्न करते रहें तो यह घृणा पराजित की जा सकती है ।” राम ने स्नेह से कहा ।
“ अगली बांधा क्या है? “ राम ने कुछ पल रूक कर कहा ।
“ राम हमारी परम्परायें भिन्न हैं ।”
“ परम्परायें क्या हैं?” राम ने पूछा ।
“ पूर्वजों द्वारा दी गई जीवन पद्धति है। “
“ और यह पद्धति किस पर निर्भर है ?”
“ भौगोलिक स्थिति ,इतिहास, और जीवन मूल्यों पर ।”
“ तो क्या भौगोलिक स्थितियाँ हमेशा एक सी रहती हैं । “
“ नहीं राम । नदी के मार्ग की तरह वह बदलती रहती हैं । “
“ और विचार? क्या वह अपनी पूर्णता को पा गए हैं जो बदले नहीं. जा सकते ?
सब चुप रहे ।
तब राम ने पुनः कहा,” इतिहास समझ कर सीखने का विषय है, दोहराने का नहीं ।”
“ फिर भी परम्पराओं का यूँ निरादर नहीं किया जा सकता ।” युवक के पिता ने कहा ।
“ तो क्या इसका अर्थ यह नहीं कि परम्परायें कोई प्राणहीन वस्तु नहीं , अपितु जीवंत विचार हैं ।” राम ने ज़ोर देते हुए कहा ।
“ परन्तु राम इनके और हमारे ईश्वर भिन्न हैं, ये मृत्यु पश्चात स्वर्ग की अवधारणा में विश्वास रखते हैं , जबकि हम मानते हैं जो है वह यहीं है , इससे हमारी जीवन शैली पर प्रभाव पड़ता है ।” युवती के पिता ने कहा ।
कुछ पल के लिए राम मानो स्वयं में खो गए, फिर उन्होंने गंभीरता से कहा, “ क्या कोई जानता है वह जन्म से पूर्व कहाँ था ?” किसी ने उत्तर नहीं दिया तो राम ने कहा, “ जब जन्म से पहले की अवस्था को नहीं जानते तो मृत्यु के बाद की कैसे जानोगे ?”
“ तो क्या तुम ईश्वर को नहीं मानते?” किसी वनवासी ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा ।
“ मानता हूँ. । “ राम ने मुस्करा कर कहा, “ मेरा ईश्वर वह ऊर्जा है जो मुझे आनंद की ओर ले जाती है। बहुत नहीं जानता, पर इतना जानता हूँ, चाहूँ तो भी , व्यक्तिगत आनंद को समाज के आनंद से अलग नहीं कर सकता, अकेला व्यक्ति निरर्थक है, परन्तु यदि सब मिल जायें तो एक शक्ति हैं ; एक व्यवस्था स्थापित कर सकने की, शांति पाने की, ज्ञान पाने की, और इस पृथ्वी से भी परे जाकर जीवन का अर्थ ढूँढने के क्रम की।
“ राम आपकी बात हमें पूरी तरह से समझ नहीं आ रही, पर आप कह रहे हैं तो वह उचित ही होगा। आप हमसे क्या अपेक्षा रखते हैं? “ युवक के पिता ने कहा ।
राम दोनों पिताओं के निकट आ गए , और दोनों के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “ मेरी विनती है आपसे, आप दोनों गले मिलें , और इन दोनों का विवाह कर दें ।”
“ राम आप विनती नहीं आदेश दें, परन्तु यदि मेरी पुत्री इनके घर रहेगी तो मैं चिंतित रहूँगा ।” युवती के पिता ने हाथ जोड़ते हुए कहा ।
“ मैं समझ रही हूँ आपकी बात, “ सीता ने आगे बड़ते हुए कहा, “ इस स्थिति में वह पहली संतान होने तक ये दोनों हमारे साथ नई कुटिया बनाकर रहें। वह संतान दोनों परिवारों की होगी, और तब तक आशा करती हूँ आप इस निरर्थक ईर्ष्या द्वेष से मुक्ति पा चुके होंगे।” सीता ने मुस्करा कर कहा ।
“ और यदि संतान नहीं हुई तो ?” किसी ने पीछे से धृष्टतापूर्वक कहा।
“ तो उस स्थिति में दोनों जनजातियाँ एक एक शिशु इन्हें गोद देंगे, और वह बच्चे इन्हें पुनः अपने समूह से जोड़ेंगे ।” सीता ने धैर्य से कहा ।
उस रात राम की कुटिया के बाहर आनंद और उमां का पाणिग्रहण हुआ । पूरा जंगल पुनः जीवित हो उठा ।
आनंद और उमां ने आशीर्वाद के लिए राम सीता के पाँव छुए तो सबकी ऑंखें आनंद से सजल हो उठी।
—-शशि महाजन