विवश मन
जब भी क्षितिज पर
टिकती है मेरी नजर
तो न जाने क्यों
एक अद्भुत एहसास के साथ
किसी अदृश्य की तलाश में
प्रवृत्त होने को मन विवश हो जाता है
क्षितिज तक नजर, जो भी देख पाता हूं
अपूर्व सौंदर्य से युक्त
बहुत बार टकटकी बांधकर देखता रहता हूं
ठगा-सा रह जाता हूं
और साथ ही फिर न जाने क्यों
कोई तो है और भी बेहद खूबसूरत
बहुत सुंदर
उसकी तलाश में
प्रवृत्त हो जाने को मन विवश हो जाता है ।
इस खूबसूरत वसुंधरा पर
पेड़ पौधे पशु पक्षी जीव
सभी से तो मेरा अद्भुत
आत्मीयता का नाता है
जिसे मन हर पल निभाता है
परंतु जब भी देखता हूं इस जड़ चेतन
मानव संस्कृति को तो न जाने क्यों
उस अद्भुत अनूठे रिश्ते की तलाश में
प्रवृत्त हो जाने को मन विवश हो जाता है।
धरातल के अंक , अद्भुत निधियां
अपूर्व कोश , मोह पाश,
रजनी आ जाती है
बहुत बार
अपने टिमटिमाते दीपों के साथ
और इंदु अपनी सभी कलाओं से
कर लेता है मोहित बहुत
हतप्रभ रह रह गया हूं मैं
परंतु न जाने क्यों
किसी विराट सौंदर्य की तलाश में
प्रवृत्त हो जाने को मन विवश हो जाता है।