विलोम शब्द युक्त दोहे
01 (सत्य/असत्य)
कोई कहता सत्य है, कोई कहे असत्य।
मुझको भी देते बता, ईश तुम्हारे कृत्य।।
02 (हार/जीत, जीवन/मौत)
जीवन में औ’ मौत में, अंतर इतना मीत।
यह जीवन यदि हार है,मौत समझलो जीत।।
03 (घाटा-नफ़ा)
देखो मत घाटा-नफ़ा, करके प्यार महंत।
जग में सच्चे प्यार से, मिलती ख़ुशी अनंत।।
04 (ज़्यादा/कम)
ज़्यादा-कम मत देखिए, जब दे कोई दान।
देने वालों की नियत, होती बड़ी महान।।
05 (नर/नारी)
नर-नारी के बीच जब, हो न उचित व्यवहार।
चलता दोनों में तभी, जीवन भर तक़रार।।
06 (काला/गोरा)
काले-गोरे का नहीं, पालें मन में दंश।
होता सबका रंग तो, जिसका जैसा वंश।।
07 (छोटा/बड़ा, गरीब/अमीर)
कौन यहाँ छोटा-बड़ा, कौन गरीब-अमीर।
सबके जब दिखते यहाँ, एक समान शरीर।।
08 (पास/फेल)
कोर्ट-कोर्ट में खेलते,अलग-अलग से खेल।
कोई होता पास तो, कोई होता फेल।।
09 (आगत/गत)
आगत का सत्कार कर, गत को जाओ भूल।
वर्तमान को ही सदा, करिए मीत कबूल।।
10 (सुख/दुख)
कोई यम के वार से, बचता नहीं महंत।
सुख में या दुख में रहें, होता सबका अंत।।
11 (सुख/दुख)
माता अपने पुत्र की, सुनकर के आवाज।
पल भर में लेती लगा, सुख-दुख का अंदाज।।
12 (राजा/रंक)
चाहे कोई भी रहे, राजा-रंक महंत।
लाखों करें उपाय पर, होना निश्चित अंत।।
13 (लड़का/लड़की)
लड़का भी काॅलेज है, लड़की भी काॅलेज।
पर दोनों के बीच में, नाता करे दहेज।।
14 (बेटा/बेटी)
बेटा-बेटी में नहीं, करते हैं जो भेद।
ऐसे लोगों से कभी, किंचित करें न खेद।।
15 (रात/दिवस, सन्ध्या/सुबह)
कैसे तेरे प्रेम का, छाया है उन्माद।
रात-दिवस,संध्या-सुबह,आती तेरी याद।।
16 (सुबह/शाम, दिन/रात)
इतनी तुमसे आरजू , हे! मेरे जगदीश।
सुबह-शाम,दिन-रात मैं,तुम्हें नवाऊँ शीश।।
17 (दिन/रात)
चूल्हा चक्की से कहे, अपने दिल की बात।
जिस दिन तुम चलती नहीं,जलूँ न मैं उस रात।।
18 (रात/दिन)
करें परिश्रम रात-दिन, होकर के मजबूर।
जो सबको सुख दे रहा, वही सुखों से दूर।।
19 (दिन/रात)
लब से जो होती नहीं, आँखें करती बात।
पड़ता सबको मानना,यदि कह दिन को रात।।
20 (दिन/रात)
बात-बात की बात पर, करते रहते बात।
काम-काज जिनको नहीं,करते हैं दिन-रात।।
21 (सुबह/शाम, दिन/रात)
मैं तुमको देखा करूँ, सुबह-शाम, दिन-रात।
तुम मुझको देखा करो, तभी बनेगी बात।।
22 (सुबह/शाम)
आप कहें तो है सुबह, आप कहें तो शाम।
जैसा चाहा आपने , वैसा होगा काम।।
23 (माता/पिता, भाई/बहन)
हुए पराए पुत्र भी, जाते ही परदेश।
मात-पिता,भाई-बहन, भूले अपना देश।।
24 ( मात-पिता)
मात-पिता आशीष दें, करे तरक्की लाल।
दुनिया के संग्राम में, पाए लक्ष्य विशाल।।
25 (मात-पिता)
मात-पिता की बात को, जो भी माने मीत।
जग के हर संग्राम को, पल में जाते जीत।।
26 (गुण/दोष)
दोष रहित होता अगर, मानव का संसार।
धरती पर होता सदा,गुण का ही विस्तार।।
27 (हार/जीत)
जो पर को खुश देखने, हार मान ले मीत।
उनसे यह सारा जगत, कभी सके न जीत।।
28 (जीत/हार)
जश्न मनाते हैं सभी, जीत अगर हो यार।
मानें हम उस जश्न को, होती हो जब हार।।
29 (हार/जीत)
मन के हारे हार है,मन के जीते जीत।
मन से कभी न हारना, ओ मेरे मनमीत।।
30 (जल/थल)
जल थल में आकाश में, जिस ईश्वर का राज्य।
मन – मंदिर से वो भला, कैसे होंगे त्याज्य।।
31 (धरती/आकाश)
जम जाएँगे ठंड से, ये धरती आकाश।
दिया नहीं यदि सूर्य ने,अपना नवल प्रकाश।।
32 (आज/कल)
मौके को मत ढूंढ़िए, मौका तो है आज।
अपनाए जो आज को,कल पर करता राज।।
33 (माँ-बाप)
आज्ञा जो माँ-बाप की,अक्सर लेते मान।
उनका इस संसार में, बढ़ जाता सम्मान।।
34 (माँ-बाप)
दोबारा मिलते नहीं, दुनिया में माँ – बाप।
फिर क्योंकर तरसा रहे, उन दोनों को आप।।
35 (माँ/बाप)
आँखों पर पट्टी नहीं, बाँधे अब माँ-बाप।
बच्चों की हर हरक़तें, गौर कीजिए आप।।
36 ( नर/नारी)
नर से नारी का नहीं, होगा जो संयोग।
दुनिया में होगा नहीं, कोई भी उद्योग।।
37 (गुण-/दोष)
जो गुण को गुण कह रहे, और दोष को दोष।
जग के झूठे लोग सब, करते उस पर रोष।।
38 (प्रकट/गुप्त)
प्रकट नहीं करना कभी, जो हो बातें गुप्त।
ऐसी बातों को सदा, हो जाने दो लुप्त।।
39 (लेन/देन)
लेन-देन चोखा रखें, मधुर रखे सम्बंध।
रिश्तेदारी में तभी, आए मीठी गंध।।
40 (जीना/मरना)
जीना-मरना है प्रिये, मुझे आपके संग।
जीतेंगे तब साथ में, जीवन की यह जंग।।
41 (पानी/आग, दोस्ती/दुश्मनी)
हो यदि तेरी दोस्ती, तो जस फूल-पराग।
हो यदि तेरी दुश्मनी, तो फिर पानी-आग।।
42 (जमा/खर्च, कम/अधिक)
हो जाती दौलत जमा, चाहे कम हो आय।
ख़र्च नहीं करना अधिक, इसका सरल उपाय।।
43(धरती/अम्बर)
नीला अम्बर बन गया, धरती का परिधान।
देख अचंभित हो रहे, जग के चतुर सुजान।।
44(जहर/दवा)
जहर दवाई सम लगी , मुझको उस दिन यार।
जिस दिन मेरे मौत ने, छीने कष्ट अपार।।
45 (खण्डन/मण्डन)
खण्डन-मण्डन छोड़कर, लेखन पर दे ध्यान।
तब ही साहित्य में कवि, होगा तेरा मान।।
46 (धनवान/गरीब)
कोई है धनवान तो, कोई यहाँ गरीब।
सुख-साधन उसको मिले, जिसको प्राप्त नसीब।।
47 (गर्मी/सर्दी, छाया/धूप)
गर्मी में छाया सदृश, औ’ सर्दी में धूप।
मौसम के अनुरूप ही, प्रिये! तुम्हारा रूप।।
48 (लम्बी/चौड़ी)
लम्बी-चौड़ी हाँकते, दुनिया में जो लोग।
सच में करते ही नहीं, कोई भी उद्योग।।
49 (दाल/चावल, मिर्च/तेल)
दाल नहीं चावल नहीं, मिर्च न हल्दी-तेल।
हाय! गरीबी में प्रिये, बिगड़ गया सब खेल।।
50 (छोटी/मोटी)
छोटी-मोटी बात को, जो रखता है याद।
जीवन उसका सत्य ही, हो जाता बर्बाद।।
भाऊराव महंत