‘ विरोधरस ‘—9. || विरोधरस के आलम्बनों के वाचिक अनुभाव || +रमेशराज
अत्याचारी, दुराचारी व्यक्ति विष के घड़े, कुत्सित इरादों से लैस, छल और अहंकार से भरे होते हैं। उनकी कटूक्तियों व गर्वोक्तियों का उद्देश्य दूसरे के मर्म को चोट पहुंचाना, अपमानित करना होता है। वह अपनी विषैली वाणी से दूसरों को पराजित करने के उद्देश्य से हमेशा तीक्ष्ण और चुभने वाली बातें करते हैं। अश्लील गालियों की बौछार ही उनका अन्य प्राणियों का स्वागत या सत्कार होता है।
विरोध-रस के आलंबन एक ऐसी बीमारी या हीनग्रन्थि के शिकार, हर प्रकार से मक्कार तत्त्व होते हैं जो अपने को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने के लिए सदैव झूठ, छल का सहारा लेते हैं। अनीति का साम्राज्य स्थापित करने वाली उनकी वाणी यदि कभी विनम्र होती भी है तो उसके पीछे उनकी स्वार्थपूर्ति छुपी होती है।
विरोध-रस के आलंबनों के वचन तीर या तलवार की तरह सज्जनों के मन में घाव करते हैं। ये धूर्त्त लोग वैसे तो बहुत बढ़-चढ़ कर बातें करते हैं, किंतु बात जब न्याय की आती है तो इनकी जुबान बर्फ जैसी जम जाती है-
आये इतिहास में इंसाफ के अवसर कितने,
भीष्म-सी साध गये चुप्पियां गुरुवर कितने?
-राजेश मेहरोत्रा, कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 12
स्वार्थ की गीता सभी गाने लगे हैं,
सभ्यता को बेचकर खाने लगे हैं।
-गिरिमोहन गुरु, कबीर जिन्दा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 20
देके दुहाई धर्म की, मजहब की देखिए,
नफरत से आज खाइयों को पाटते हैं ये।
-गिरिमोहन गुरु, कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह ] पृ.24
भारत में जन-जन को हिंदी अपनानी है,
अंगरेजी में समझाते हैं जनसेवकजी।
-रमेशराज, इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह ] पृ.44
बोल खुशबू में घुले हैं,
शिष्टता दुर्गंधमय है।
+सुरेश त्रस्त, इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 32
धर्म के उपदेशकों ने आजकल
शांति का प्रस्ताव ठुकराया हुआ है।
-दर्शन बेज़ार, एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह ] पृ.15
बड़ी-बड़ी डींगें अपना तकिया कलाम हैं
हम हैं फन्नेखान दिवाने, धत्त तेरे की।
-राजेंद्र मिलन, सूर्य का उजाला, समीक्षा अंक, पृ.2
+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001