‘ विरोधरस ‘—18. || विरोध-रस की पूर्ण परिपक्व रसात्मक अवस्था || +रमेशराज
स्थायी भाव आक्रोश जागृत होने के बाद आश्रय में घनीभूत होने वाले ‘विरोध-रस’ से सिक्त अपमानित-प्रताडि़त-दमित-उत्कोचित और पीडि़त व्यक्ति की रस-दशा कैसी और किस प्रकार की होती है, उसे आश्रय के अनुभावों द्वारा स्पष्ट रूप से पहचाना सकता है।
‘विरोध-रस’ का स्थायी भाव ‘आक्रोश’ जब अपनी जागृत अवस्था के चरम पर पहुंचता है तो इसके भीतर से संचारी भाव दैन्य, उत्साहहीनता, शोक, भय, जड़ता, संताप आदि तो अपनी-अपनी भूमिका निभाकर शांत हो जाते हैं, सिर्फ जागृत रहता है क्षोभ, विषाद, व्यग्रता के बाद तीक्ष्ण आक्रोश। आक्रोश ही विरोध-रस की पूर्ण परिपक्व रसात्मक अवस्था है |
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+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630