विरांगना का उदघोष
हर आंख में आंसू बह रहे थे,
पर वह तो आंसू पी गयी थी,
सुबक रहे थे जहां सब नर-नारी,
वह दृढ-निश्चयी अडिग खडी थी,
लोग दे रहे थे गमगींन विदाई,
वह निशछल भाव से देख रही थी,
जब देने लगी वह विदाई,
तो प्यार से उसे चूम रही थी,
और जय हिन्द का उदघोष करती निकिता,
विरांगना भी बन गयी थी।
उम्र के इस पडाव पर, अभी देखा ही क्या था,
अभी-अभी तो गृहस्थी बसी थी,कि
तभी पुलवामा सामने आ गया,
जो सपने संजोए थे खुशियों के,
पुलवामा उन्हें खा गया,
अनहोनी यह कैसी घट गयी,
अरमानो को जला गया,
घर रह गया नर विहीन,
विभूति जैसा लाल चला गया।