विरह व्यथा
आओ आज तुम्हें बतलाएं
दोनों की है अजब कहानी
एक था सागर इक नदिया थी
दोनों की यह अमर कहानी
एक दिन सागर
कुछ यूं बोला
नदिया रानी बात बताओ
जीवन में तप बल से तुमने
जीवन भर जो संजोया है
यश वैभव की पुंजी सारी
पहचान तुम्हारी ,
मनभावन
यह दुनिया सारी
मिलकर मुझसे
पल भर में
वह सारा सब कुछ खोया है
फिर भी तुम मिलने को मुझसे
भागी भागी आती हो,
क्यों तुम फिर मिलने को मुझसे
दौड़ी दौड़ी आती हो ?
बातें सुन हैरान हुई
सहमी फिर बोली यूं नदिया
“प्रियतम ! कैसे निष्ठुर हो तुम
कैसी तुम बातें हो करते
कैसे वह दिन भूल गए
इक कतरा बन
तुमसे मैं जब विलग हुई थी
तुम अपलक मुझे रहे देखते
मैं मेघों की राह चली थी,
फिर धवल धार पर
कठिन तपस्या
की रूप वही फिर पाने को
सदियों से पहचान जो मेरी
रूप तुम्हें जो भाता था।
क्यों न तुमसे मिलने आती
जन्मों का तुम से नाता था।”
हाल यह सारा विरह व्यथा का
नदिया ने यूं सुना दिया
सागर ने फिर नम आंखों से
नदिया को गले लगा लिया।।