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20 Jun 2017 · 1 min read

विरह गीत

विरह गीत
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श्यामघटा घनघोर निहारत
बूँद झमाझम गीत सुनाए,
दादुर शोर हिया झुलसावत
खेत हरी चुनरी लहराए।

प्रीत लगी जब साजन से तब
नैनन नींद मुझे नहिं भाए,
चातक के सम राह तकूँ नित
आवत रात मुझे तरसाए।

मोर पिया परदेस गए सखि
बैरन गीत रहा तड़पाए,
निष्ठुर भाव धरै उर में लखि
पावस की ऋतु आग लगाए।

जाग कटे रतिया सगरी बिन
साजन चैन जिया नहि पाए,
आन मिलो सजना हमसे
रजनी अब सेज सजा अकुलाए।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 329 Views
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