विरह गीत
विरह गीत
कब तक राह निहारुं तेरी, अब आँखे पथराती हैं
वर्षों बीत गए साजन क्यों, मेरी सुधि नहि आती है
सूने सब श्रंगार हुए हैं
तुम बिन ओ मेरे साजन
सूना सूना दिल है मेरा
सूना अपना घर आँगन
अब बैरन वो यादें तेरी, मुझको आज रुलाती हैं
वर्षों बीत गए साजन क्यों, मेरी सुधि नहि आती है
विरह व्यथा में तड़प रही हूँ
मौसम रंग बदलता है
तुम बिन अब मधुमास जहर यह
सावन बैरी लगता है
शीतल सुरभित मंद हवाएं, तन में आग लगाती है
वर्षों बीत गए साजन क्यों, मेरी सुधि नहि आती है
सुबक रही हूँ अबोध शिशु सी
आकर आस बँधा जाओ
पिया मिलन को मन आकुल है
साजन अब घर आ जाओ
गली आकर बंजारन बंजारन, प्रीत के गीत सुनाती है
वर्षों बीत गए साजन क्यों, मेरी सुधि नहि आती है
अभिनव मिश्र अदम्य