विरह — गीत
तरसी तरसी अखियां बरसी वक्त बना क्यों इतना बेरी
पिया की याद सताए मुझे तो नींद ना आए
आस लगाए जिंदा हूं मैं अपने आप ही शर्मिंदा हूं मैं
यह दर्पण और चिड़ाए मुझे तो नींद ना आए
काली घटाएं सावन महीना धरती प्यासी कैसा जीना
यह मेघा तरस न खाए मुझे तो नींद ना आए
कि भेजूं भेजूं तुमको संदेशा खबर नहीं तुम कौन से देशा
कोई तो राह दिखाए मुझे तो नींद ना आए
सुन लो सुन लो मोर पपीहा बन जाओ तुम मोरी जिव्हा
बालम मेरे लौट के आवे मुझे तो नींद ना आए ।
“राजेश व्यास अनुनय”