विरह की अगिन मा।
विरह की अगिन मा सजन के
जियरा हमार हरै दम जलत है।
सबै कुछ तो है घर मा हमरे
फ़िरौ सुखन ना यह रहत है।।1।।
प्रीतम की य्याद मा मनवा
इधर उधर विचिरत है।
दिखत नाहि कहूं पर वहु हमका
धीर जिगर का धीरे धीरे घटत है।।2।।
मोर पपीहा चिड़िया
सब मधुबन मा रहत है।
हम ही घर की कोठरी मा
ऐसी वैसी बस बिसरत है।।3।।
घरमा हमका हमरे
सबहि शत्रु नज़र भरि द् याखत है।
देखि के हमका अजिया का
मन बस बहुत खुश होई जावत है।।4।।
कौने पहर वहि से हमरे
नैन नख़्स सब लड़ि गै।
अच्छे खासे पढति लिखति रहन
अब तो घूरन जैसन होई गेन।।5।।
मन हमरा अब हमरि भी
तनिक सा भी नाहि सुनत है।
धीरे धीरे हमका वह सबसे
अपननतै बस दूरि ही करत है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ