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8 Jul 2022 · 1 min read

“विरहा धरा की”

झूम के बरसे
बदरा आज
मौसम ने बदला
अपना मिज़ाज़
जैसे याद
किसी की आई
धरती से मिलने
खुद बूंदे चली आई
धरा की खुशबू
में है राज़
खुलकर
बता दिया है आज
तुम से मिलने को
थी तरसती
आस मिलन की
लगाए रहती
विरहा की बेला
बीती आज
खत्म हुआ
विरहा का राज़
जो तुम ना
बरसतीं
तो अधूरी ही
रह जाती
फिर कौन आता
जिसको सुनाती
इन नन्ही नन्ही
बूंदों की
साज और आवाज़।

कुमार दीपक “मणि”

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 264 Views
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