विरहाकुल साधू
दृश्य: सती भस्म लपेटे महादेव वन वन विचर कर विचार कर रहे है
विरहाकुल साधू हूँ
कहाँ तक आ गया हूं मैं
क्यों प्रतिध्वनित हृदय है मेरा
एकांत वन में अदृश्य साथी पा गया हूं मैं
तज दिया वियोग में सब
जो पाया या बनाया मैंने
ओ सती, बस इतना बता दो
क्या प्रेमवंधन ठीक निभाया था मैंने
मैंने शमशान देखे
अशांत कोई स्वर न हुआ वहाँ
भूतेस्वर हूं मैं तो क्या
सत से तृप्त किंचित न हुआ वहाँ
जोग सिखाता था मैं उसे
सती योग सिखाती थी मुझे
उसके जाने के बाद पता नही क्यों
विरक्ति शिक्षा भी झूठा बताती थी मुझे
मैंने कहा प्रिय सती
प्रेम और साधना एक कभी नही हुए
सती का उत्तर था संयुक्त है नाथ ये
विमुक्त ही कभी नही हुए
कोई साधक ही नही
जिसने स्व साधना से प्रेम ही न किया
अन्यथा न लेना नटसम्राट
दीक्षा दें यदि कोई नृत्य राग बिन किया
ओ सती तुम्हारी बात का
अब मर्म जानता हूं मैं
तुम्हारे प्रेम बिन अब कोई साधना
बेअर्थ मानता हूं मैं
प्रवीनशर्मा
मौलिक स्वरचित रचना