विरहनी के मुख से कुछ मुक्तक
विरहनी के मुख से कुछ मुक्तक
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अगर एक बार तुम आ जाते,
ये आंसू आंखो से रुक जाते।
लगा लेते तुम मुझको सीने से,
सारे मन के मैल भी धुल जाते।।
विरह वेदना से मै जलती हू,
बिन अग्नि के मै जलती हूं ।
जरूरत नहीं है अब माचिस की,
बिन माचिस के अब जलती हूं।।
बिन पानी के मै नहा जाती हूं,
जब पसीने से मै नहा जाती हूं।
धधक रही है ज्वाला इतनी,
बिन नहाए मै नहा जाती हूं।।
ग्रीष्म ऋतु भी जा चुकी,
वर्षा ऋतु भी आ चुकी।
मौसम सुहावना हो चुका,
आस्मां में बदली छा चुकी।।
सब सखियां झूले में झूल रही
मै मौत के झूले में झूल रही।
कब आएंगे वो तुम्हे झुलाने,
सारी सखियां मुझ से पूछ रही।।
आन मिलो सजना अब तुम,
और न तड़पाओ अब तुम।
प्रतिक्षा कर रही मै तुम्हारी,
बतलाओ आओगे कब तुम।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम
मो 9971006425