” विभाजित व्यक्तित्व .. बनाम ..सम्पूर्ण व्यक्तित्व “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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हमें फेसबुक के क्यारिओं में रंग बिरंगी फूलों की पंखुडियों का आभास होने लगा ! …उनकी सुगंधों से नयी ताजगी मिलने लगी !… मन बाग़ -बाग़ होने लगा ! नए मित्रों के समवेशों ने जीवन में प्राण फूंक दिया !… श्रेष्ठ के सानिध्य में आने का अवसर मिला ! …कुछ नए- पुराने मित्रों के आगमन से नयी ताजगी का आ गयी !
फेसबुक सीमित परिधियों से छलाँगें मारता अपने कनिष्ठों लोगों को भी गले लगा लिया ! क्षितिज के कोने -कोने तक हमारी महक पहुँचने लगी ! उन्होंने हमारी सभ्यता और संस्कृति को जाना और समझा और हम भी उनके करीब पहुँचने लगे !
भाषाएँ अब अवरोधक ना रहीं ! विचार ,लेख ,कविता ,कहानी ,व्यंग ,परिहास ,समालोचना ,टिप्पणियाँ ,समाचार इत्यादि पढ़कर हम तृप्त हो जाते हैं ! और देखते –देखते हम आपार जनसमूहों के सानिध्य में आने लगते हैं !
साहित्य परिचर्या ,विश्लेषण ,दृश्य अवलोकन इत्यादि के आदान -प्रदान से प्रेम ,आदर और सत्कार छलकता है और यूँ हमें सम्पूर्ण सकारात्मक व्यक्तित्व की अनभूति होने लगती हैं ! ..
मित्रता तो कई स्तंभों पर टिकी है परन्तु एक स्तंभ के बिना मित्रता चलना तो दूर दो कदम रेंग भी नहीं सकतीं ! ..वो “समान विचारधारा” का स्तंभ है ! इसके आभाव में मित्रता की सांसें फूल जाती है और धीरे -धीरे निष्प्राण होने लगती है !
इसके अलावे यदि इसमें राजनीति के कर्कश बोल का समावेश होने लगता है तो हम एक ” विभाजित व्यक्तित्व ” की श्रेणी में आ जाते हैं ! लगने लगता है कि हम अलग -अलग ग्रहों के प्राणी हैं ..फिर यह मित्रता रेंगने से भी कतराने लगती है !
राजनीति विचारधारा हरेक व्यक्ति में निहित होता है ! इन विचारधारा को शालीनता ,शिष्टाचार और माधुर्यता के सुगंधों से सिंचित करेंगे तो हमें फेसबुक के बागों में लोग निहारा करेंगे ..पर कर्कश बोल और दूषित टिप्पणी से लोग हमें ” विभाजित व्यक्तित्व ” की संज्ञाओं से ही मात्र विभूषित करेंगे !
हम भी अपने विचारों को रखते हैं पर इन विचारों को शालीनता से अपने टाइम लाइन की परिधियों तक ही सीमित रखते हैं ! किन्हीं के विचारों के रणक्षेत्र में प्रवेश करना निषेध समझते हैं !
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
भारत