“विपत्ति”
विपत्ति!तेरा आभार!
तूने वे सारे आवरण हटा दिये
जिनके पीछे का सच
नहीं देख पा रही थी मैं।
हाँ…
पीड़ा होती है,
दुखता है हृदय सत्य के साक्षात्कार से
किन्तु,
सत्य के साक्षात्कार का,
यही मूल्य है शायद….।
विपत्ति! तेरा आभार!
कि,
अब साफ दिखता,
समझ आता है
मुँह मोड़ना, नज़रें चुराना,
झूठी अक्षमता और
चालाकी से प्रस्तुत विवशताएँ….।
विपत्ति! तेरा आभार!
कि,
क्षीण पड़े आत्मबल को,
मिल रही नयी शक्ति
और बुझे हृदय को मिल रही,
कितने ही मिथकों से मुक्ति….।