विपत्ति के समय में हमारी भाषा!
जब हम विकट संकटों से गुजर रहे हों तब हमें, अपनी भाषा को मधुर बनाना चाहिए।आज हमारा देश विकट परिस्थितियों से गुजर रहा है ।इस विकट स्थिति में हमें भाषा को थैरेपी बना लेना चाहिए।इस महामारी में हमारे डाक्टर साहब की भाषा कैसी होनी चाहिए।
यह समझ डाक्टर साहब मैं होनी चाहिए। किसी भी मरीज को भय उत्पन्न करने वाली भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
इससे मरीज के हृदय पर गहरा असर पड़ता है।वह जल्दी ठीक हो
सकता है ।अगर डाक्टर साहब ने उसे डरावनी बात न बताई तो
क्योंकि मनुष्य के हृदय में एक भय उत्पन्न हो जाता है।
तब हमारी दवाओं का असर कम हो जाता है। हमारे मिडिया कर्मियों की भाषा भी नियंत्रित होनी चाहिए। जिससे इस विकट संकट के समय हमारी जनता में भय उत्पन्न न हो। ऐसे समय में
हमें धैर्य रखना चाहिए। और, देश में भयभीत का वातावरण न पाये। हमें कोई भी स्थति को बड़ा चढ़ा कर नहीं बताना चाहिए।
इससे जनता भयभीत हो जाती है और हम किसी समास्या का समाधान तलाशने में असमर्थ हो जातें हैं। सही समय पर निर्णय नहीं ले सकते हैं। क्योंकि हमने भय पैदा कर दिया है। इससे हमारे देश के कर्मचारी भयभीत हो गए हैं अब वह अपना काम सही तरीके से नही कर पा रहे हैं।