विनोद सिल्ला की कुंडलियां
कुंडलियां
छाती तरसे स्नेह को, पीठ झेलती वार|
दगेबाज तो जय हुआ, वफा मनाए हार||
वफा मनाए हार, चाल बदल गई भाई|
स्वार्थी सबकी प्रीत, विपत में कौन सहाई||
कह ‘सिल्ला’ कविराय, रहो चौकन्ने साथी|
बचा कर रखो पीठ, नहीं तरसेगी छाती||
-विनोद सिल्ला©