विनाश की ओर
हे मानव! प्रकृति को तूने,
कैसा प्रदूषित कर डाला।
स्वच्छ सुंदर अवनी को तूने,
अविघटित तत्वों से भर डाला।
स्वच्छंद पवन अरण्य सघन,
निरंतर तरनी की धारा को,
तूने ही दूषित कर डाला,
देवनदी पवित्र किनारा को।
अस्वच्छ सिंधु के तट धरा पर,
अपशिष्ट पदार्थों के प्लावन से।
रासायनिक प्रदूषण फैला रहा तू,
विषैले कार्बनिक रसायन से।
भूमंडलीयऊष्मीकरण के जैसे
वायु प्रदूषण के दुष्परिणाम है।
वात के माध्यम से जो पसर रही
ये रुग्णता उसी का प्रमाण है।
है अंतिम अवसर अब न चेते तो,
भविष्य विकट दुष्कर होगा,
पृथ्वी पर न जीवन होगा,
न किसी जीव का घर होगा।
@ साहित्य गौरव