गर्मी की मार
गर्मी की भीषण मार पड़ रही थोड़ा सा जल रख देना
किसी नीड़ के आस पास तुम कुछ दाने बिखरा देना
याद दिला दूं आज आपको, चिट्ठी वाला वही कबूतर
हमने गाथाओं में लिखा है,उल्लेख इन्ही का जी भर भर
कहीं जटायु राज कहा तो, कहीं गरुण देव कह लेना
काक भूषुण्ड कहा काग को मत इनको बिसरा देना
किसी नीड़ के आस पास तुम कुछ दाने भी रख देना
सत्य सनातन संस्कृति अपनी अमर अजर औ अविनाशी
हरियल तोता अब नहीं दीखते, न ही गौरैया की अब राशी
चील बाज और सोन चिरैया लुप्त मूल मात होने देना
रखें ध्यान आओ हम मिलकर, संदेश मुझे यही देना
गर्मी की भीषण मार पड़ रही थोड़ा सा जल रख देना
ये मूक अवश्य हैं सत्य लेकिन, यह जीवन का हिस्सा हैं
करें संतुलित प्रकृति हमारी, प्रसिद्ध बहुत ही किस्सा हैं
बतखें सारस बगुला पीहू, मोर चकोर न बिसरा देना
ऋतुएं मौसम मेघों में बांधकर लेखनी अपनी चलादेना
किसी नीड़ के आस पास तुम कुछ दाने भी रख देना
कहानी के कुछ शब्दों में, गजलों,कवताओं और गीतों में
याद इन्हें भी रख लेना, साहित्य के साथी मनमीतों के
करूं निवेदन आप सभी से स्वीकार मुझे अब कर लेना
सांझ ढले तो छत छज्जे पर, थोड़ा बाजरा बिखरा देना..
गर्मी की भीषण मार पड़ रही थोड़ा सा जल रख देना
तापमान के ज्वर से यदि हम चाहते विजय पाना
अनिवार्य नहीं केवल कहना वृक्षारोपण भी करना
काट पेड़ और तोड़ घोंसल अपना घर बना लेना
कैसे फिर खुशहाली पाये इतना चिन्तन कर लेना
किसी नीड़ के आस पास तुम कुछ दाने भी रख देना
गर्मी की भीषण मार पड़ रही थोड़ा सा जल रख देना
किसी नीड़ के आस पास तुम कुछ दाने भी रख देना
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