विधि का विधान
सत्यकथा
विधि का विधान
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अब इसे विधि का विधान कहें या कुछ और ,परंतु मैं तो इसे विधि का विधान ही मानता हू्ँ।
25 मई 2020 की रात में मैं पक्षाघात से पीड़ित हो गया।एक सप्ताह तक अस्पताल में रहा।फिर घर आ गया।इलाज चलता रहा।सिंकाई और फीजियोथेरेपी भी चलता रहा।धीरे धीरे मैं चलने लगा।क्योंकि पैर पर असर कम था।हाथ में भी धीरे धीरे सुधार हो रहा था।
प्रश्न ये नहीं कि मैं पक्षाघात का शिकार हुआ।प्रश्न ये था कि लगभग 1998-99 से मेरा साहित्य से लगाव पूरी तरह से खत्म हो गया था।जून’20 के अंत में जब हाथ भी थोड़ा काम करने लगा,तब अचानक से मेरा मन पुनः साहित्य सृजन को लालायित होने लगा।फिर मैें अपने कदम सृजनपथ की ओर बढ़ाने का प्रयास करने लगा और अंततःफिर मेरे कदम साहित्य सृजन की ओर अग्रसर हो गये।
यह अलग बात है कि पूर्व का मेरा अनूभव कुछ सहायक जरूर बना, लेकिन लगभग 20-22 साल जहाँ मेरी कलम ने दो लाइन भी नहीं लिखी हो,साहित्य से मन उचट सा गया हो।तो यह आश्चर्यजनक ही कहा जायेगा।ऐसा भी नहीं था कि मेरी रचनाएं प्रकाशित नहीं हो रही थी।उन दिनों भी पचासों पत्र पत्रिकाओं, संकलनों में मेरी रचना को स्थान मिल चुका था।कुछेक मंच भी मैंने साझा किये थेे।दर्जनों प्रमाण पत्र भी मिल चुके थे।फिर अचानक सब कुछ ठहर गया।यही नहीं कभी फिर इच्छा भी नहीं हो रही थी।
लेकिन अब मन पूरी तरह साहित्य सृजनपथ पर लालायित है।जिसका परिणाम यह है कि सृजन के साथ साथ प्रकाशन भी लगातार हो रहा है।30-35 पत्र पत्रिकाओं के अलावा, न्यूज ब्लॉग, ई ब्लॉग, ई पत्र पत्रिकाओं, बेवसाइट पर भी रचनाओं का निरंतर प्रकाशन हो रहा है।तीन दर्जन से अधिक सम्मान पत्र भी मिल चुका है।अनेक साहित्यिक प्रतियोगिताओं में भागीदारी की/कर रहा हू्ँ।अनेक संकलनों में रचनाएं प्रकाशित/स्वीकृत हैं।
इस तरह मेरी दूसरी साहित्यिक पारी धीरे आगे बढ़ रही है।
अब इसे जिसको जो समझना हो समझे,परंतु मैं इसे ईश्वरीय कृपा/विधान ही मानता हू्ँ।अन्यथा इतने लम्बे अंतराल के बाद शायद लेखन कर पाना असंभव ही था।मैं तो ये भी मानता हू्ँ कि पक्षाघात कहीं न कहीं मेरे लिए वरदान ही साबित हुआ।ये अलग बात है कि रोजगार चौपट हो गया। आर्थिक दिक्कतों का सामना जरूर हुआ।फिर भी जैसी प्रभु की इच्छा।उसके आगे तो सभी को नतमस्तक होना ही पड़ता है।
✍ सुधीर श्रीवास्तव