Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Oct 2020 · 2 min read

विधि का विधान

सत्यकथा
विधि का विधान
*************
अब इसे विधि का विधान कहें या कुछ और ,परंतु मैं तो इसे विधि का विधान ही मानता हू्ँ।
25 मई 2020 की रात में मैं पक्षाघात से पीड़ित हो गया।एक सप्ताह तक अस्पताल में रहा।फिर घर आ गया।इलाज चलता रहा।सिंकाई और फीजियोथेरेपी भी चलता रहा।धीरे धीरे मैं चलने लगा।क्योंकि पैर पर असर कम था।हाथ में भी धीरे धीरे सुधार हो रहा था।
प्रश्न ये नहीं कि मैं पक्षाघात का शिकार हुआ।प्रश्न ये था कि लगभग 1998-99 से मेरा साहित्य से लगाव पूरी तरह से खत्म हो गया था।जून’20 के अंत में जब हाथ भी थोड़ा काम करने लगा,तब अचानक से मेरा मन पुनः साहित्य सृजन को लालायित होने लगा।फिर मैें अपने कदम सृजनपथ की ओर बढ़ाने का प्रयास करने लगा और अंततःफिर मेरे कदम साहित्य सृजन की ओर अग्रसर हो गये।
यह अलग बात है कि पूर्व का मेरा अनूभव कुछ सहायक जरूर बना, लेकिन लगभग 20-22 साल जहाँ मेरी कलम ने दो लाइन भी नहीं लिखी हो,साहित्य से मन उचट सा गया हो।तो यह आश्चर्यजनक ही कहा जायेगा।ऐसा भी नहीं था कि मेरी रचनाएं प्रकाशित नहीं हो रही थी।उन दिनों भी पचासों पत्र पत्रिकाओं, संकलनों में मेरी रचना को स्थान मिल चुका था।कुछेक मंच भी मैंने साझा किये थेे।दर्जनों प्रमाण पत्र भी मिल चुके थे।फिर अचानक सब कुछ ठहर गया।यही नहीं कभी फिर इच्छा भी नहीं हो रही थी।
लेकिन अब मन पूरी तरह साहित्य सृजनपथ पर लालायित है।जिसका परिणाम यह है कि सृजन के साथ साथ प्रकाशन भी लगातार हो रहा है।30-35 पत्र पत्रिकाओं के अलावा, न्यूज ब्लॉग, ई ब्लॉग, ई पत्र पत्रिकाओं, बेवसाइट पर भी रचनाओं का निरंतर प्रकाशन हो रहा है।तीन दर्जन से अधिक सम्मान पत्र भी मिल चुका है।अनेक साहित्यिक प्रतियोगिताओं में भागीदारी की/कर रहा हू्ँ।अनेक संकलनों में रचनाएं प्रकाशित/स्वीकृत हैं।
इस तरह मेरी दूसरी साहित्यिक पारी धीरे आगे बढ़ रही है।
अब इसे जिसको जो समझना हो समझे,परंतु मैं इसे ईश्वरीय कृपा/विधान ही मानता हू्ँ।अन्यथा इतने लम्बे अंतराल के बाद शायद लेखन कर पाना असंभव ही था।मैं तो ये भी मानता हू्ँ कि पक्षाघात कहीं न कहीं मेरे लिए वरदान ही साबित हुआ।ये अलग बात है कि रोजगार चौपट हो गया। आर्थिक दिक्कतों का सामना जरूर हुआ।फिर भी जैसी प्रभु की इच्छा।उसके आगे तो सभी को नतमस्तक होना ही पड़ता है।
✍ सुधीर श्रीवास्तव

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 525 Views

You may also like these posts

वो सफ़र भी अधूरा रहा, मोहब्बत का सफ़र,
वो सफ़र भी अधूरा रहा, मोहब्बत का सफ़र,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
पहले साहब परेशान थे कि हिन्दू खतरे मे है
पहले साहब परेशान थे कि हिन्दू खतरे मे है
शेखर सिंह
धरती
धरती
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
बना दिया हमको ऐसा, जिंदगी की राहों ने
बना दिया हमको ऐसा, जिंदगी की राहों ने
gurudeenverma198
अध्यापक
अध्यापक
Sakhi
सच तो जिंदगी भर हम रंगमंच पर किरदार निभाते हैं।
सच तो जिंदगी भर हम रंगमंच पर किरदार निभाते हैं।
Neeraj Agarwal
नफ़्स
नफ़्स
निकेश कुमार ठाकुर
People often dwindle in a doubtful question,
People often dwindle in a doubtful question,
Chaahat
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मोर सपना
मोर सपना
Dijendra kurrey
जुबां
जुबां
Sanjay ' शून्य'
" जमीर "
Dr. Kishan tandon kranti
बड़ी  हसीन  रात  थी  बड़े  हसीन  लोग  थे।
बड़ी हसीन रात थी बड़े हसीन लोग थे।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
पुलवामा वीरों को नमन
पुलवामा वीरों को नमन
Satish Srijan
प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
संस्कारों का चोला जबरजस्ती पहना नहीं जा सकता है यह
संस्कारों का चोला जबरजस्ती पहना नहीं जा सकता है यह
Sonam Puneet Dubey
छल छल छलका आँख से,
छल छल छलका आँख से,
sushil sarna
2664.*पूर्णिका*
2664.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
तुम जिंदा हो इसका प्रमाड़ दर्द है l
तुम जिंदा हो इसका प्रमाड़ दर्द है l
Ranjeet kumar patre
होती जब वर्षा की कहर
होती जब वर्षा की कहर
उमा झा
मन की बात
मन की बात
पूर्वार्थ
अध्यापक
अध्यापक
प्रदीप कुमार गुप्ता
स्याह एक रात
स्याह एक रात
हिमांशु Kulshrestha
श
Vipin Jain
छंद: हरिगीतिका : इस आवरण को फोड़कर।
छंद: हरिगीतिका : इस आवरण को फोड़कर।
Ashwani Kumar
इश्क़ छूने की जरूरत नहीं।
इश्क़ छूने की जरूरत नहीं।
Rj Anand Prajapati
कोई नही है अंजान
कोई नही है अंजान
Basant Bhagawan Roy
सड़क
सड़क
Roopali Sharma
"ज्ञान"
Aarti sirsat
चाहतें
चाहतें
Dr.Pratibha Prakash
Loading...