विधा-मुक्त छंद
जय, जय माँ भारती।
सिंह-सुता दहाड़ती।।
आगे कभी, पीछे कभी
नीचे कभी, ऊपर कभी
घूम-घूम अग्नि बाण मारती
जय, जय माँ भारती ।
सिंह-सुता दहाड़ती।।
मार्ग दुष्कर था,लक्ष्य अटल था।
पर निश्चय उसका भी, प्रबल था।।
बढ़ रहे थे , असंख्य दुशासन।
चीर डालने को, तेरा दामन।।
जय, जय माँ भारती ।
सिंह -सुता दहाड़ती।।
मानो खड़ी हो साक्षात माँ चण्डी।
़धर जोर वो जब थी हूँकारती ।।
जय, जय माँ भारती ।
सिंह -सुता दहाड़ती।।
असंख्य तोप थे गरज रहे।
नरमुण्ड भी थे बिखर रहे।।
जय,जय माँ भारती।
सिंह -सुता दहाड़ती।।
होकर खून से लथपथ।
माँ तेरी चरणों को
वो थी पखार रही।
और दुशासनों पर
अपने अन्त तक
थी वो हूँकार रही।।
जय, जय माँ भारती।
सिंह-सुता दहाड़ती।।