विधा – दोहे
विधा – दोहे
१ भारत के गणतंत्र का, सारे जग पहिचान ।
भरोसा भरी खिल रही, उसकी अद्भुत शान॥
भारत का हर नागरिक, संविधान का मीत।
इसीलिए सब मन रही , विश्वासों का रीत ॥
जो संकट हैं राह में, दो ना उनको तूल।
तभी कंटक खेत में, उत्थान बने फूल॥
सत्य और अहिंसा का, देता जो मंत्र है
हर्षोल्लास भरा, दिवस गणतंत्र है।
हो जाये जब होश में , भारत का हर वीर।
तभी मरेगी वेदना, हारेगी सब पीर॥
स्वरचित –रेखा मोहन २६/१/23 पंजाब