विधायक का समधी
विधायक का समधी
गाँव काजूवाला की चौपाल में एक बुजुर्ग को कोई विधायक का समधी (संबंधि) कह रहा था। बुजुर्ग कहने वाले के पीछे मारने-कूटने के लिए भाग रहा था। बाकी सब ताड़ी पीट कर हँस रहे थे। उस बुजुर्ग को ग्रामीणों द्वारा यूं चिढ़ाए जाने और उसके चिढ़ने के बारे में पूछने पर गाँव के एक सूझवान व्यक्ति ने बताया।
विधानसभा चुनाव के दौरान राजपा के प्रत्याशी प्रकाश उजाला वोट मांगने गाँव में आया। उसने अपने चमचों-कड़छों से पता लगाया कि उसके गाँव की काजूवाला में किस-किस के यहाँ रिश्तेदारी है। पता लगते ही वह उन सबके घर गया और रिश्तेदार होने का दंभ भरा। चुनाव की वैतरणी पार लगाने की अपील की। जिन-जिन परिवार में प्रत्याशी के गाँव की लड़की ब्याही हुई थी। उन घरों में जाकर, अपने गाँव की उन लड़कियों के सिर पर हाथ रखकर सौ-सौ रुपए दिए। वोट देने और दिलवाने की अपील की। उन लड़कियों के पति को अपना दामाद बताया। उनके ससुर को अपना संबंधि यानि समधी बताया।
जिस दिन से बुजुर्ग शिबला को (शिवलाल को उसके गाँव में सभी शिबला के नाम से ही बुलाते हैं) नेता जी ने समधी बताया है। उस दिन से उसके पैर जमीन पर नहीं लगे। उसने अपने कुटुंब-कबीले को एकजुट करने के लिए बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में उसके सभी चचेरे भाई-भतीजे व परिजन शामिल हुए। जिनसे शिबले ने अपने रिश्तेदार को जिताने के लिए अपील की। शिबले का एक भतीजा बोला, “भारत जाति प्रधान देश है। जहाँ रोटी-बेटी का रिश्ता अपनी ही जाति में होता है। यह नेता अपनी जाति का नहीं है, यह अपना रिश्तेदार नहीं हो सकता। खासकर सियासी लोग तो किसी के सगे होते ही नहीं।”
शिबला ने उसे अपना विरोधी मानकर उसके तमाम दावे-आपत्ति खारिज कर दिए। परिवार में सबसे बड़ा होने का दंभ भरते हुए, फरमान सुना दिया कि पूरा परिवार अपने रिश्तेदार प्रकाश उजाला को ही अपना वोट और सपोर्ट करेगा। उसके जीतने पर परिवार में एक भी युवा बेरोजगार नहीं रहेगा। सबको नौकरी लगवा देंगे। अगले दिन से ही शिबला अपने तथाकथित रिश्तेदार की सपोर्ट में चुनाव प्रचार में जुट गया। उसने जी तोड़ मेहनत की, रूठों को मनाया, उसे पार्टी का मेनफैस्टो भी जुबानी याद हो गया। अपनी पगड़ी का रंग भी पार्टी के झंडे जैसा ही कर लिया। शिबला पूरी तरह अंधभक्त हो कर अपने तथाकथित रिश्तेदार के प्रति समर्पित हो गया। उसकी मेहनत रंग भी लाई। उसका तथाकथित रिश्तेदार चुनाव जीतकर विधायक बन गया। यही नहीं राज्य और केन्द्र में राजपा की ही सरकार बनी। शिबला फूला नहीं समा रहा था। शायद इतनी खुशी तो स्वयं विधायक को भी नहीं हुई होगी। जितनी बुजुर्ग शिबले को हुई।
अब शिबला पहले वाला शिबला नहीं रहा। अब वह हर किसी को अपना परिचय विधायक का समधी बताकर देने लगा। सभी ग्रामीण उसे विधायक का समधी ही कहने लगे। गाँव के स्कूल, चिकित्सालय, पशु चिकित्सालय, बैंक/डाकघर व अन्य कार्यालयों के अधिकारियों-कर्मचारियों के समक्ष विधायक का समधी होने का दंभ भरता। वह अपना सिक्का चलाने का भरपूर प्रयास करता।
एक दिन किसी ने शिबले को बताया कि रेलवे में अनुबंध आधारित रेलवे फाटक पर गार्ड की भर्ती निकली हैं। अपने समधी से मेरी भी शिफारिश कर दो। वह शिफारिश करने की हाँ-हूँ करके विचारने लगा। मेरा पुत्र (विधायक का जमाई) कम पढ़ा-लिखा है। क्यों नहीं विधायक से कहकर उसे ही, इस अनुबंध वाली गार्ड की नौकरी पर लगवा लूं। उसने विधायक से मिलने की योजना बनाई। किराए पर गाड़ी लेकर चार-पाँच निजी मित्रों को साथ लेकर चल पड़ा अपने तथाकथित रिश्तेदार विधायक से मिलने। किराए की गाड़ी दौड़ती जा रही थी। शिबला और उसके संगी साथी बातों में मशगूल थे। वह अपने पुत्र की अनुबंध आधारित रेलवे में नियुक्ति लगभग पक्की ही मान बैठा था। माने भी क्यों नहीं? विधायक के चुनाव में उसने जी-जान एक कर दिया था। शिबला साथियों से कह रहा था कि बेटे की नियुक्ति अपने गाँव वाले फाटक पर ही करवा लेंगे। साईकिल पर ही ड्यूटि पर चला जाया करेगा। साईकिल पर भी छह हजार रुपए खर्चने पड़ेंगे। कोई बात नहीं खर्च कर देंगे। वह खुद ही सवाल करके, खुद ही जवाब देता जा रहा था। भाग-दौड़ करके गाड़ी विधायक के महलनुमा निवास-स्थान के समक्ष जा खड़ी हुई। शिबले ने विधायक से मिलने की गर्ज से, विधायक के सुरक्षा-कर्मी से कहा, “भाई विधायक से मिलना है। हम विधायक के रिश्तेदार हैं, गाँव काजूवाला से।” विधायक के गनमैन ने उनको बैठने का इशारा किया। वे कुर्सियों पर बैठ गए। विधायक से मुलाकात का इंतजार करने लगे। सफेदपोश, भगवाधारी, खादीधारी, खाखीधारी, काले कोट वाले व अन्य लिबास वाले आते रहे। विधायक से मिलकर जाते रहे। शिबला व उसके साथी मूकदर्शक बने बैठे देखते रहे। ज्यों-ज्यों समय बीतता गया। उत्साह छू-मंत्र होता गया। विधायक के साथ तथाकथित संबंध टूटता गया। सुबह के आए हुए की शाम को बारी आई विधायक से मुलाकात की। विधायक ने उनका कागज-पत्र देखकर अपने निजी सचिव को दे दिया। शिबला चुनाव में की अपनी मेहनत व रिश्तेदारी की चर्चा करने लगा तो विधायक के गनमैन ने उनको बाहर जाने का इशारा करते हुए कहा कि विधायक महोदय का विश्राम का समय हो गया। आप बाहर आइए। गनमैन लगभग ठेलता हुआ उनको बाहर ले आया।
इस मुलाकात ने शिबले का दिल तोड़ दिया। उसने अपने साथियो से निवेदन किया कि इस बारे में गाँव में किसी को मत बताना। क्या कहेंगे लोग। उसके साथियों भी गाँव में किसी को न बताने की हामी भरी। प्यार में धोखा खाए प्रेमी-सा हाल लिए , शिबला गाँव में आया। उसके साथियों दो-चार दिन तो शिबले को दिए वचन का लिहाज रखा। उसके उन्होनें पूरा घटनाक्रम गाँव वालों को बता दिया। गाँव वाले तब से ही उसे विधायक का समधी कहकर बुलाते हैं तो वह विधायक को गालियाँ निकालना हुआ। मारने को दौड़ता है। सभी उसका मजाक करते हैं।
-विनोद सिल्ला
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