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11 Dec 2021 · 1 min read

विद्या शंकर विद्यार्थी

कविता

का करीं

का करीं अब बात नइखे चलत
दिन चलत बा रात नइखे चलत

दिन के रोटी जूर जात बा खटके
का करीं अब हाथ नइखे चलत

हाथ के सकेती से कब उबरब
महंगी में माँड़ भात नइखे चलत

ढहल घर बरसात के हहात बा
मन अगरात जम्हात नइखे चलत ।

विद्या शंकर विद्यार्थी
11/12/2021
रचना मौलिक एवं अप्रकाशित

Language: Bhojpuri
232 Views

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