*”विद्यार्थियों की उपस्थिति”
प्रकथन/आमुख
“विद्यार्थियों की उपस्थिति”
एक विद्यालय सिर्फ किसी भवन की चार दिवारी को नही कहा जा सकता,,
सिर्फ शिक्षक और भौतिक वस्तुओं का होना भी विद्यालय की परिकल्पना को साबित नही करता है,,
विद्यालय का मूल केंद्र बिंदु है उसके विद्यार्थी और उनकी संख्या साथ ही उनकी उपस्थिति वो भी कितने समय तक क्योकि जब विद्यार्थी अपनी कक्षा शाला मैं पूरे समय रहेगा तब ही उसके समग्र विकास की बात की जा सकती है,,
विद्यार्थी की उपस्थिति एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है जिससे ही उस विद्यालय की शैक्षणिक,खेल,व्यायाम,अन्य गतिविधियों को आगे बढाया जा सकता है,,
अगर सम्पूर्ण शाला मैं आने बाले बच्चों की उपस्थिति का प्रतिशत अधिक है तो स्वाभाविक तौर पर स्तर भी अच्छा होगा,,
मुख्य बात ये है कि विधार्थियो की हाजरी को सुनिश्चित करने के तरीके जो निम्न हो सकते है,,
जो विद्यार्थी शाला मैं नही आ रहे है उनके घर पर सम्पर्क करना,,
उनकी आने बाले परेशानी जैसे आवागमन,खानपान,रहनसहन,शुल्क,और अन्य चीजो की उपलब्धता को देखना,,
पारिवारिक परिवेश को बच्चों के पढ़ने के अनुकूल बनाने का प्रयास जो कि उस बच्चे के पालक,पोषक,अभिभावक से मिलकर किया जा सकता है,,
शाला का वातावरण उनके मन मष्तिष्क के अनुरूप हो,पुस्तको का रखरखाव,आदि पर ध्यान दिया जाये,,
भौतिक जररुतो की पूर्ति जैसे पीने पानी की व्यवस्था,स्वच्छ सौचालय,बैठकर खाने का स्थान,खेल के लिए समाग्री,,पठन पाठन के लिए अन्य मनोरंजक पुस्तके होना,,
बाल रंग,बाल मेला,बाल सम्वाद आदि का आयोजन किया जाना जिससे उसका मनोरंजन और ज्ञान को बढ़ाया जा सके,,,
जैसे कि बच्चे स्वाभाव से ही नाजुक और खेल,पत्ती,फूल,चिड़िया,खिलौने, मिट्टी,आदि से लगाव रखते है,,तो उनकी पठनपाठन के सामग्री भी उनके पहचान के अनुरूप रखी जाये,,
बच्चों को शाला मैं ठहराव के लिए उनके मनमस्तिष्क से ये बात मिटना की कोई डर है भय है या पढ़ना स्कूल जाना बहुत कठिन काम है ,,
एक दम सरलतम और आसान बनाना और बताना कि यह सब आसान है,,
बच्चों की मनस्थिति और परस्थिति को समझकर ही सम्वाद किया जाये,,
तब जाकर हम विद्याथियों को जोड़ने मैं सफल हो पायेंगे,,
उनके आचार विचार और व्योवहार को समझकर पठन पाठन किया जाये,,,
एक सफल विद्यालय की परिकल्पना को इस तरह सच किया जा सकता है,,,
मानक लाल मनु,,,??
सहायक अध्यापक,??