विदेशी बनाम देसी
कुछ बदले बदले से मेरे त्योहार नज़र आते हैं
हाथों में अब विदेशी उपहार नज़र आते हैं
वो त्योहारों की खुशियां और आपसी प्यार
वो बहनों का दुलार और बचपन का यार
वो पड़ोसी के चाचा वो नुक्कड़ का लाला
कलाई पर बंधा बहन का मोली का धागा
वो घेवर का डब्बा वो लड्डू की मिठास
वो रोली का टीका वो आंगन में उगी घास
आज ये सब खोये खोये से नज़र आते हैं
हाथों में अब विदेशी उपहार नजर आते हैं
वीर कुमार जैन, मेरठ।
सोच बदलो विदेशी छोड़ो देसी अपनाओ