विदाई
स्मृति सारे घर को भीगी आँखों से निहार रही थी। ऐसे देख रही थी जैसे पता नहीं कभी लौटना होगा भी या नहीं।मैंने कहा.चल स्मृति नीचे सब इंतज़ार कर रहे हैं।हमें जाना जो था,स्मृति की शादी तय हो गई थी ।उन लोगों ने हमें अपनी सहुलियत के हिसाब से वहीं बुला लिया था।दो दिन बाद शादी थी और हमें निकलना था।मैं बहन को लेकर नीचे पहुंची और हम सब रवाना हो गए। (मेरी बहन स्मृति पोलिओ से ग्रसित एक पांव से विकलांग थी..पर बहुत होशियार नाच गाने बजाने में कुशल बहुत सुंदर.. आवाज़ में इतनी मिठास जब गाती तो सब देखते रह जाते) हमने उसी की तरह लड़का चुना ताकि आगे चलकर दोंनों को कोई हीनभावना महसूस ना हो…।शादी का दिन आया ,खूब धूम धाम से ब्याह हुआ। और बहन को विदा कर हम घर लौट आए। कुछ साल हंसी खुशी में व्यतीत हो गए।अचानक स्मृति बहुत बीमार रहने लगी.. बहुत दवा दारू हुआ पर…. और एक दिन वो हम सब को रोता तड़पता छोड़ दुनियाँ से चली गई।
…आज़ यूहीं अचानक वो दृश्य आँखों के आगे तैर गया जब वो विदा होते वक्त घर को निहार रही थी।बहन तो हमेशा के लिए चली गई पर अपनी यादें और अनमोल धरोहर हमारे पास छोड़ गई… अपना बेटा.. “स्मित”
(…दुनियाँ से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहां..कैसे ढूंढे कोई उनको ..नहीं कदमों के भी निशां)…गाना रेडियो पर बज रहा था..और स्मित मेरे आँसू पोंछ रहा था….)